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छात्रशक्ति जनवरी 2021

संपादकीय छात्रशक्ति जनवरी 2021

देश 71वां गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी में है। गणतंत्र अर्थात संविधान का शासन। नागरिकों के मूल अधिकार पर होने वाले आघात के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार। सत्ता की निरंकुशता को संविधान के दायरे में बांधने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था। सरकार द्वारा बनाये हर कानून की संवैधानिकता को परखने का अधिकार न्यायपालिका को।

आज पंजाब के किसान सरकार द्वारा बनाये कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। वे सड़कों पर उतर आये हैं और दिल्ली की सीमाओं को घेर कर बैठे हैं। सरकार उनसे संशोधन सुझाने के लिये बार-बार कह रही है किन्तु वे कानूनों की वापसी से कम पर मानने को तैयार नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए एक समिति के गठन की घोषणा की है लेकिन किसानों को इससे भी संतोष नहीं। किसान प्रदर्शन के लिये दिल्ली आना चाहते हैं और सीएए आंदोलन का कड़वा अनुभव ले चुकी केन्द्र सरकार इसके लिये राजी नहीं। जो अराजक तत्व सीएए के आंदोलन के दौरान हिंसा फैलाने के षड्यंत्र रच रहे थे वे किसान आंदोलन के इर्द-गिर्द भी मंडरा रहे हैं। इन लोगों द्वारा किसान आंदोलन को भी हिंसा की ओर धकेलने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार इसी से सशंकित है।

दुर्भाग्य से विपक्ष में गंभीर नेताओं की संख्या लगातार घट रही है और विभिन्न राजनैतिक दलों में नयी पीढ़ी का नेतृत्व राष्ट्रीय चिंतन से परे और दूरदृष्टि के अभाव से ग्रस्त है। उसकी नजर तात्कालिक लाभ पर है और इसके लिये वह कुछ भी करने को तैयार है। दिन-प्रति दिन इसके उदाहरण दिखाई दे रहे हैं।

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किसानों का आंदोलन, उसे राजनैतिक तत्वों का समर्थन और उनके बीच अराजक तत्वों का जमावड़ा, यह तीनों अपनी जगह। महत्वपूर्ण प्रश्न यह कि सर्वोच्च न्यायालय के सक्रिय होने के बाद भी आंदोलनकारी उसकी पहल को स्वीकार करने के प्रति असमंजस में क्यों हैं ? दूसरा, अगर सच में नये कानून किसानों का अहित कर सकते हैं तो न्यायपालिका को उसके परखने के लिये जरूरी समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिये ? तीसरा, अगर नये कानून इतने ही आपत्तिजनक हैं तो शेष देश के किसान इसमें शामिल क्यों नहीं हो रहे हैं? और अंतिम, क्या आवागमन को बाधित कर, चुनिंदा कंपनियों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर और पहले से कोरोना की मार झेल रहे उद्योग जगत को चोट पहुंचा कर क्या किसानों का भला संभव है ?

राजनीति से परे, न्यायपालिका पर आस्था बनी रहना गणतांत्रिक व्यवस्था के लिये आवश्यक है। इसके लिये न केवल सभी को इसकी पहल करनी होगी बल्कि न्यायपालिका को भी अपनी छवि वदलने के लिये कुछ प्रयास करने होंगे। पीढ़ियों तक चलने वाले मुकदमे. विशेष कर ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के लिये किसी भयानक स्वप्न से कम नहीं है। यद्यपि इस दिशा में न्यायपालिका की गति बढ़ी है लेकिन इसकी साख को स्थापित करना इस गणतंत्र दिवस का संकल्प हो सकता हैं।

युवा दिवस और गणतंत्र दिवस की शुभकामना सहित,

आपका

संपादक

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