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हजारों अपमानो के बाद भी समरसता के लिए संघर्ष करते रहे बाबा साहब

सुनील भारद्वाज

भारत एक प्राचीन देश है जो हजारों लाखों वर्षों से विश्व गुरु और सोने की चिड़िया कहलाता रहा है। देश अपने ज्ञान, विज्ञान, अतुल संपदा के कारण दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करता रहा है। जिसे जो चाहिए उसे वह इस देश से मिला, इसलिए इसको ‘देवभूमि ‘भी कहा जाता है। इस देवभूमि में बहुत सी अच्छी बातों के साथ जब देश गुलाम हुआ था तो एक ओर विदेशी आक्रांताओं से संघर्ष कर रहा था तो दूसरी ओर सामाजिक बुराइयों,  कुरीतियों,रूढ़ियों, ढकोसलो और जाति – भेदों में बंटा हुआ अपना समाज इन सब विषयो से भी संघर्ष कर रहा था । एक ऐसा विचित्र काल था कि अपने ही देश के बंधु- बांधव अपने धर्म के बंधुओं को स्पर्श करने और देखने से डरते थे ।

हिंदू  – हिंदू के स्पर्श मात्र से ही अपवित्र होने लगा था। भारत के करोड़ों भाई- बहन इसी देश में स्वधर्म बंधुओं द्वारा परिष्कृत और अपमानित किए गए । सिर्फ इसलिए क्योंकि उनका जन्म छोटी कही जाने वाली जाति में हुआ । उस समय में लाखों मनुष्य अपमानित ही जन्म लेते और अपमानित होकर ही मर जाते। यह सब उस समाज में हो रहा था जिस समाज में चींटी और सांप को भोजन कराने की परंपरा थी , जहां पर वृक्षों की पूजा की जाती है, जहां पर धरती को माता माना जाता है, गंगा को माता माना जाता है,गौ को माता माना जाता है ,गायत्री को माता माना जाता है । जहां पर अतिथि देवो भव का मंत्र चलता है जिस देश की संस्कृति आपसी सौहार्द, बंधुत्व और जहां वसुदेव कुटुंबकम् का मंत्र चलता है उसी समाज में यह बुराइयां पनप रही थी । लेकिन यह राष्ट्र एक अमर राष्ट्र है । समय-समय पर भारत माँ ने ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दिया जिन्होंने समाज में फैली इन बुराइयों को समाप्त करने के लिएअपना जीवन लगा दिया |

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे, भारत रत्न नानाजी देशमुख  हमेशा कहते थे कि मेरा जीवन मेरे अपनों के लिए, मेरे अपने वो हैं जो शोषित हैं, पीड़ित हैं, वंचित हैं, गरीब हैं व जिनकी उपेक्षा की गई । ऐसा मानकर उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया उस समाज के उत्थान के लिए लगा दिया और आज हम चित्रकूट मैं जा कर के देखेंगे तो नानाजी देशमुख के द्वारा किए गए समाज सुधार के कार्यों का एक प्रतिबिंब हमें दिखाई देता है । ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन लगाकर समाज का उत्थान किया । एक ऐसा ही जीवन बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का रहा । एक ऐसा जीवन जिसका पग-पग पर अपमान होता रहा, जिसका लोग पग-पग पर विरोध करते रहे । जिससे लोग पग-पग पर घृणा और करते रहे ।  जिसको प्रत्येक स्थान पर दुत्कारा गया।  जिसके साथ स्थान-स्थान पर भेदभाव किया गया लेकिन उसके बाद भी एक ऐसा उदारवादी व्यक्तित्व जो इतने विरोधों के बाद भी कभी रुका नहीं, हमेशा उस अपमान के घूंट को पीता रहा और सहता रहा मन में सिर्फ यही संकल्प लेकर की यदि इस समाज में इस प्रकार का भेदभाव रहा तो भेदभाव से भरा हुआ समाज यह कभी भी दुनिया का नेतृत्व नहीं कर पाएगा और इसलिए अपने मन में सुंदर भारत के स्वप्न को सजाकर वह निरंतर संघर्ष करता रहा ।
ऐसा नहीं था कि उनकी प्रतिभा में कोई कमी थी । सिर्फ बात इतनी थी कि उनका जन्म महार जाति (तथाकथित दलित ) में हुआ । सिर्फ इसलिए उनकी प्रतिभा का सम्मान नहीं हुआ ।
जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के जीवन को पढ़ा और उनकी उपलब्धियों को पढ़ा तो उन्होंने कहा कि यदि ऐसा पुरुष हमारे अमेरिका में जन्म लेता तो हम उसे सूर्य कहकर संबोधित करते । यानी हमने अपने हीरे की पहचान नहीं की लेकिन वह वास्तव में सूर्य ही था जैसे कितने ही बादल आकर के यह सोचते हैं कि हम सूर्य को उदय नहीं होने देंगे लेकिन सूर्य का काम उदय होना ही है और समग्र धरती को प्रकाशमान करना है, ऐसे ही बाबा साहब एक सूर्य की भांति उनका प्रकाश आज संपूर्ण भारत को प्रकाशित कर रहा है ।
जब वह छोटे थे तो विद्यालय में उनको प्रवेश देने से मना कर दिया और उस बालक को प्रवेश मिला भी तो इस शर्त पर मिला कि वह कक्षा से बाहर बैठेगा, जहां बाकी छात्र अपने जूते-चप्पल उतारते थे । इस शर्त पर मिला कि वह श्यामपट्ट को हाथ नहीं लगाएगा । सभी विद्यार्थी विद्यालय में पानी की टंकी से पानी पी सकते हैं लेकिन यह अभागा उस पानी की टंकी से पानी भी नहीं पी सकता था, ऐसा अपमान सहकर बाबा साहब ने शिक्षा ग्रहण की ।
मैं कभी-कभी सोचता हूं कि उस बाल मन पर इन सब बातों का क्या प्रभाव पड़ा होगा । यदि हमारे साथ कोई थोड़ा सा भी गलत कर दे तो हम उससे वक्त आने पर ब्याज समेत पूरा हिसाब करते हैं और उस अपमान को अपने मन में पालते रहते हैं लेकिन बाबा साहब ऐसे नहीं थे। बाबा साहब ने हर किसी को अपमान के बदले सम्मान देने का ही काम किया । इससे ज्यादा उदार मन वाला व्यक्ति ओर क्या हो सकता है?
हम यह भी जानते हैं बाबा साहब 9 भाषाओं के ज्ञाता थे।  26 उपाधियां उनको मिली हुई थी और 32 डिग्री उनके पास थी । बहुत से देशों ने उन्हें अपने यहां नौकरी देने के लिए कहा, उन्हें कहा कि हम आपको आपके देश से ज्यादा मान सम्मान देंगे लेकिन उनके मन में भारत के करोड़ों अपमानित लोगों की पीड़ा का ज्वार उनके मन को आंदोलित किए हुआ था । उन्होंने किसी भी देश में नौकरी करने से मना कर दिया, उन्होंने कहा कि “मैं सबसे पहले और अंत में भारतीय हूं “। मैं जीऊंगा तो भारत के लिए, मरूंगा तो भारत के लिए। इसलिए मैं अपना सारा जीवन पूरे सामर्थ्य के साथ अपने देश के गरीबों के लिए, पिछड़ों के लिए व शोषित बंधुओं के लिए लगाना चाहता हूं । मैं सिर्फ उनके उत्थान के लिए काम करना चाहता हूं । ऐसा जीवन निश्चित रूप से हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है । उन्होंने भारत वापस आकर नौकरी करनी प्रारंभ की लेकिन उसके बाद भी जब उस दफ्तर में यह पता चला की बाबा साहब महार जाति से हैं तो इतने विद्वान होने के बाद भी वहां का चपरासी उन्हें पानी तक नहीं पिलाता था। उनकी मेज पर फाइलें रखी नहीं जाती थी , दूर से ही फेंकी जाती थी लेकिन उसके बाद भी बाबा साहब ने कभी भी किसी से इसका बदला लेना है ऐसा किंचितमात्र भी मन में भाव नहीं आया ।
एक बात और मैं कहना चाहता हूं कि बाबा साहब को कुछ लोग एक छोटे दायरे में बांध देते हैं ,यह उचित नहीं है। बाबा साहब किसी जाति विशेष के नेता नहीं थे । इस भारत में जो भी गरीब था, शोषित था, वंचित था, उपेक्षित था ऐसे समग्र समाज का उत्थान करना ही बाबा साहब का लक्ष्य था । यदि बाबा साहब के सपनों को साकार करना है तो यह आवश्यक है कि उनके उस चिंतन को समाज के सामने हमें लाना चाहिए। जिसमें उन्होंने संपूर्ण समाज की एकजुटता और समरसता की बात कही। जहां उन्होंने कहा था कि जो ऊपर उठे हुए बंधु हैं वह अपने कमजोर भाइयों को स्वयं हाथ पकड़ कर ऊपर उठाएं, वही जो नीचे बैठे हुए लोग हैं उनसे कहा कि स्वयं उठने का प्रयास करें ।

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बाबा  साहब  का  मंत्र था “परावलंबन नहीं स्वावलंबन” जिसे उन्होंने अपने जीवन के उदाहरण से  प्रस्तुत किया । बाबा साहब ने एक मंत्र दिया “शिक्षित बनो -संगठित बनो और संघर्ष करो ” लेकिन आज यह देख कर भी आश्चर्य होता है कि हमारे अनुसूचित जाति जिसे तथाकथित लोग दलित कहकर पुकारते हैं जो दलित के नाम पर समाज में आंदोलन खड़ा करते हैं जो दलित के नाम पर समाज को तोड़ने का प्रयास करते हैं। जो दलित के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं मैं उनसे कहना चाहता हूं कि बाबा साहब ने कहा था कि सबसे पहले शिक्षित बनो लेकिन आप लोग उन्हें यह शिक्षा नहीं दे रहे। उन्होंने जो सबसे अंत में कहा कि संघर्ष करो आप लोग शिक्षित और संगठित को हटा करके सिर्फ संघर्ष करो, इस मंत्र को लेकर के काम कर रहे हैं । यह कदापि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का विचार नहीं हो सकता और इसलिए पूजनीय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के सामाजिक समरसता के संदेश को जीवन में उतार कर व्यक्तिगत बुराइयों व सामाजिक कुरीतियों को दूर कर सबल, संगठित व समतायुक्त समाज का निर्माण करने की दिशा में हम सब लोग आगे बढ़े । निश्चित रूप से एक नए भारत का उदय हो रहा है हम ऐसे भारत का निर्माण करें जिसमें ने कोई छोटा होगा ना कोई बड़ा होगा ना कोई अपमानित होगा ना कोई तिरस्कृत होगा हर कोई भारतीय होगा ,भारतवासी होगा।

(लेखक अभाविप के विभाग संगठन मंत्री हैं।)

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