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विख्यात गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन

रामानुजन जयंती पर विशेष

अतुल भाई कोठारी
श्रीनिवास रामानुजन गणित के क्षेत्र में ध्रुव तारे के समान आज भी चमक रहे हैं। 99 वर्षों के बाद भी उनके द्वारा 32 वर्ष 4 मास एवं 4 दिन के छोटे से जीवनकाल में गणित के क्षेत्र में जो कार्य किया गया उसे सिद्ध करने के लिए दुनिया के गणितज्ञ आज भी प्रयासरत है।
रामानुजन ने 13 वर्ष की उम्र से ही अनुसंधान कार्य शुरू किया था एवं 15 वर्ष की उम्र में स्वयं किये गये कार्य को नोटबुक में लिखने की शुरूआत की थी। एक प्रकार से कहना है तो वह गणित को लेकर ही जन्मे थे, गणित के लिए ही जीवन भर समर्पण भाव से कार्य किया और आमरण वह इसी कार्य में लगे रहे। वे बहुत अधिक बिमार थे, उस समय प्रो. हार्डी उनसे मिलने के लिए गये। जाते समय रास्ते में वह सोच रहे थे कि रामानुजन का स्वास्थ्य खराब होने के कारण आज गणित की कोई बात नहीं करूंगा। कुछ हल्की – फुल्की बातें करना अच्छा होगा। जब वे रामानुजन से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं जिस टैक्सी से आया उसका नंबर 1729 था जो अपशकुन संख्या है। रामानुजन ने तुरंत कहा कि नहीं नहीं “यह संख्या छोटी से छोटी संख्या है, जिसे दो भिन्न भिन्न रूपों में दो संख्याओं के घन के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। वह इस प्रकार कि – 1729 = 10³  + 9³  = 12³+ 1³  विख्यात गणितज्ञ प्रो. लिटिलवुड का ठीक ही कहना था कि रामानुजन प्रत्येक संख्या के मित्र थे।”
स्वदेश लौटने के बाद असाध्या बिमारी की अवस्था में भी उनकी गणित की साधना चलती रही। उनकी पत्नी जानकी देवी के शब्दों में कहें तो “वे पूरे समय पथारी में रहने के कारण उनकी पीठ एवं पैर में दर्द होता था। परंतु उसका परवाह किये बिना रामानुजन कहते थे कि मुझे तकीया लगाकर बैठा दो और बाद में स्लेट और कलम मांगकर गणित के अनुसंधान कार्य में मग्न हो जाते थे। मृत्यु के दो मास पूर्व 12 जनवरी 1920 को प्रो. हार्डी को अंतिम पत्र में लिखा उसमें भी उन्होंने “मॉक थीटा फंक्शन” पर मिले परिणामों को भेजा था।
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 के दिन उनके मामा के घर तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। उनके पिताजी श्रीनिवास आयंकर तंजाऊर जिले के कुंभकोणम गांव में कपड़े की दुकान में मुनीम का कार्य करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत सामान्य थी। उनकी माता कोमलताम्मल धार्मिक प्रवृति की एक परम्परावादी महिला थीं। परिवार से मिले धार्मिक संस्कारों के कारण रामानुजन भी रोज सुबह पूजा – पाठ करते थे, हमेशा धोती पहनना, चोटी रखना आदि बातें उनके जीवन में दिखती थीं। जब रामानुजन को प्रो. हार्डी के माध्यम से इंग्लैंड जाने का निमंत्रण मिला तब उनकी माता ने स्पष्ट ना में उत्तर दिया। क्योंकि उस समय गलत मान्यताओं के कारण समंदर पार जाना अशुभ माना जाता था और विदेश के लोग मांस, मदिरा का सेवन करते हैं तो मेरे बच्चे पर भी कुसंस्कार का प्रभाव पड़ेगा। उनकी कुलदेवी नामगिरी में अत्यंत श्रद्धा थी।
एक दिन सुबह उनकी माता ने कहा कि कल रात्रि में उनको कुलदेवी स्वप्न में आयी और उसमें रामानुजन को सम्मान अंग्रेजों में बैठे देखा। बाद में कुलदेवी ने उनको आज्ञा दी वह पुत्र की इच्छा के विरूद्ध कुछ भी न करे तब उनकी माता को वचन दिया कि वह भारतीय परंपरा एवं धर्म का पूर्ण रूप से पालन करेंगे और हमेशा शाकाहारी भोजन ही लेंगे। इसके बाद 17 मार्च 1914 को इंग्लैंड के लिए उन्होंने प्रस्थान किया।
रामानुजन पढ़ाई में काफी आगे थे। इस हेतु विद्यालयीन शिक्षा के समय उनको कई पुरस्कार एवं छात्रवृतियां प्राप्त हुई थीं। परंतु गणित में विशेष रुचि के कारण उस ओर अधिक ध्यान देने के परिणामस्वरूप 11 वीं की परीक्षा में वे गणित छोड़कर सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हुए थे, परंतु उनकी गणित की उत्तरवही देखकर उनके शिक्षक भी आश्चर्यचकित थे। उन्होंने 16 वर्ष की आयु में विख्यात गणितज्ञ जी. एस. कार की पुस्तक में से ज्यामित एवं बीजगणित के प्रमेय एवं सूत्र हल कर लिए थे। 1902 में त्रिघात एवं चतुर्घात समीकरण हल करने के तरीके खोज निकाले थे। वह गणित में इतने विद्वान थे कि उनके विद्यालय में 1200 छात्र थे, इस कारण से वहां के शिक्षकों को समय सारिणी बनाने में कठिनाई आती थी, वह कठिन कार्य रामानुजन ने सहजता से करके अपने वरिष्ठ सुब्बीयार को दिया।
ग्यारहवीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद परिवार की आवश्यकता के कारण वह ट्यूशन करने लगे, बाद में विवाह हो जाने के बाद उनको कई स्थानों पर नौकरी हेतु भटकना पड़ा। इस कारण से उनका गणित कार्य भी प्रभावित होता था। परंतु उन 6 वर्ष के कठिन समय में उनकी डिप्टी कलेक्टर रामस्वामी अय्यर प्रो. पी. वी. शेषु अय्यर, सी. वी. गोपालचारी, रामचन्द्र राव आदि विद्वानों से भेंट हुई और उन सभी के सहयोग से नौकरी के साथ – साथ गणित का कार्य भी वह करते रहे।
रामाननुजन के जीवन में जिसकी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही वह कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के प्रो. हार्डी की थी। उन्होंने जब रामानुजन का गणितीय शोध कार्य देखा तब वह आश्चर्यचकित रह गये। उन्होंने ब्रिटेन के अन्य गणितज्ञों, भारत के अंग्रेज अधिकारियों तथा मद्रास विश्वविद्यालय के अधिकारियों से विचार – विमर्श एवं आग्रह करके रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया। उन्होंने इंग्लैंड में कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो के रूप में रामानुजन को प्रवेश कराने, छात्रवृत्ति दिलाने एवं अध्ययन तथा शोध कार्य में सब प्रकार से सहयोग किया। जिस रामानुजन को अपने देश में ग्यारहवी कक्षा की उपाधि नहीं मिली थी, वे विश्व के महान गणितज्ञ बनने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह किया। रामानुजन 1914 से 1919 के दरम्यान इंग्लैंड में रहे। उस दरम्यान उनके जीवन में काफी उतार – चढ़ाव आये। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण गणित के कार्य में रुकावट, खान – पान में कठिनाई ( क्योंकि रामानुजन पूर्णतः शाकाहारी थे।) अत्यधिक ठंड के कारण बीमारी आदि समस्याओं के बीच भी उन्होंने 37 शोध पत्र प्रस्तुत किये।
रामानुजन को 19 मार्च 1916 को कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि दी गई। 6 दिसंबर 1917 को ‘फेलो ऑफ लंदन मेथेमेटीकल सोसायटी’ तथा फरवरी 1918 में कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के सदस्य के रूप में वह नियुक्त हुए। मई 1918 में ‘फेलो ऑफ रायल सोसायटी’ बनने का सम्मान प्रथम भारतीय के रूप में प्राप्त हुआ। 13 अक्टूबर 1918 को वह ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने गये। इन घटनाओं से रामानुजन ने स्वयं को धन्यता का अनुभव किया। क्योंकि उनके गुरू समान प्रो. हार्डी भी इसी पद पर ट्रिनिटी कॉलेज में कार्यरत थे।
श्रीनिवास रामानुजन ने 32 वर्ष की छोटी आयु में जीवनभर संघर्षरत रहकर गणित के क्षेत्र में सारी ऊंचाईयां प्राप्त की। उनके किये हुए शोध कार्य का पार्टीकल फिजिक्स, कम्प्युटर साइंस, क्रायप्टोग्राफी, पोलिमर केमेस्ट्री, परमाणु भट्टी, दूरसंचार, कम्यूनिकेशन नेटवर्क, घात, न्यूकिलयर फिजिक्स, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में अनुप्रयोग किये जा रहे हैं। उनके तीन हस्तलिखित नोट बुक डाटा इन्स्ट्रीट्यूट ऑफ फान्डामेंटल रिसर्च के द्वारा प्रकाशित किया गया।उनके द्वारा अंतिम दिनों में जो कार्य किया गया था, वह अप्रैल 1976 में अमेरिका की विस्कोन्सीन यूनिवर्सिटी के विजीटिंग प्रो. जार्ज एन्ड्रयुज को ट्रिनिटी कॉलेज की पुस्तकालय में से अचानक 140 पृष्ठ मिल गये। प्रो. एन्ड्रयूज को ट्रिनिटी कॉलेज की पुस्तकालय में से अचानक 140 पृष्ठ मिल गये। प्रो. एन्ड्रयूज ने यह सारे पेपर को ‘The lost not book of Ramanujan’ के नाम से प्रकाशित किया। जिस पर आज भी दुनिया के महान गणितज्ञ कार्य कार्य कर रहे हैं। अभी अभी कुछ दिनों पूर्व अमेरिका के गणितशास्त्री ने रामानुजन के अंतिम पत्र में भेजे गये फॉर्मुले को सिद्ध कर लिया है, ऐसा दावा किया गया है। इसी प्रकार 1921 में प्रसिद्ध हंगेरीयन गणितज्ञ ज्योर्ज पोल्या ने प्रो. हार्डी से रामानुजन की नोट बुक कार्य करने हेतु ली थी। कुछ दिनों के बाद वे प्रो. हार्डी से मिलने आये और उन्होंने नोटबुक जल्दी में वापस कर दिया। जब प्रो. हार्डी ने कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि अगर मैं इसके परिणामों को सिद्ध करने के मायाजाल में फंस गया तो मेरा समग्र जीवन इसी में व्यस्त हो जाएगा और मेरे लिए स्वतंत्र शोध कार्य करना संभव नहीं होगा।
प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्शनिक बट्रेड रसेल ने कहा कि प्रो. हार्डी एवं लिटिलवुड ने “एक हिन्दू क्लर्क” में दूसरे न्यूटन को खोज निकाला। ए. पी. जे अब्दुल कलाम ने कहा था कि भारत ही नहीं पूरे विश्व के गणितज्ञों के लिए रामानुजन निरंतर प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। प्रो. हार्डी ने कहा कि उन्होंने मेरे जीवन को समृद्ध बनाया है, मैं उनको कभी नहीं भूलना चाहता। प्रो. हार्डी ने तत्कालीन गणित के विद्वानों को 100 में से अंक दिये थे जिसमें स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्मन गणितज्ञ हिलवर्ड को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिये थे।
रामानुजन ने इंग्लैंड के पांच वर्ष के कार्यकाल में अनेक सम्मान प्राप्त किये,परंतु अपने जीवन की सरलता, सादगी और भारतीयता को उन्होंने जीवन में यथावत बनाये रखा था। प्रो. के. आनंदराव तो रामानुजन के समय में ही किंग्स कॉलेज में थे। उनके अनुसार इतनी प्रसिद्धि मिलने के बाद भी वे स्वभाव से विनम्र थे, रहन – सहन में सादगी थी। रामानुजन विदेश में भी अपने लिए स्वयं ही भोजन बनाते थे। ‘वे कहते थे, यदि कोई गणितीय समीकरण अथवा सूत्र किसी भागवत विचार से मुझे नहीं भर देता तो वह मेरे लिए निरर्थक है।‘ जब उनकी आर्थिक स्थिति ठीन नहीं थी, लिखते समय कागज खत्म हो जाते थे तब लिखे हुए कागज पर लाल स्याही की मदद से सूत्र लिखने लगते थे। नौकरी के समय में पोर्ट ट्रस्ट के रास्ते पड़े हुए कागज इकट्ठे करके उपयोग करते थे। चैन्नई विश्वविद्यालय से जब इनको 250 रूपये की छात्रवृत्ति स्वीकार हुई, तब उन्होंने रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर कहा कि इसमें से मेरे घर का खर्च निकलने के बाद जो बच जाय वह गरीब विद्यार्थियों के सहायता कोष में जमा करा दें।
वर्ष 2011 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने श्रीनिवास रामानुजन के 125 वें वर्ष निमित्त राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया था। तबसे भारत में 22 दिसंबर को गणित दिवस मनाया जाता है परंतु दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि भारत में श्रीनिवास रामानुजन के कार्य पर विशेष अनुसंधान नहीं किया जा रहा। केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों तथा देश के गणित पर कार्य करने वाले विद्वानों एवं विश्वविद्यालयों को इस पर चिंतन करके कुछ ठोस कार्य करने के बारे में विचार करना चाहिए। श्रीनिवास रामानुजन का जीवन एवं कार्य मात्र भारत के ही नहीं विश्व के गणितज्ञों, शिक्षकों एवं छात्रों के लिए प्रेरणादायी है।
(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव हैं एवं पूर्व में अभाविप के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री रह चुके हैं।)

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