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हमारी वैचारिक यात्रा के बढ़ते कदम : आशीष चौहान

1948 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की अविरल प्रवाह आज अपने इस पड़ाव पर पहुंचा है, जहां 65 वां राष्ट्रीय अधिवेशन, 71 वां वर्ष, 26 राष्ट्रीय अध्यक्ष, 30 महामंत्रियों, लाखों कार्यकर्ता, हजारों पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन का बहुमूल्य समय देकर से सींचा और शिक्षा क्षेत्र ही नहीं अपितु समाज क्षेत्र के प्रत्येक भाग हेतु करोड़ों विद्यार्थियों, युवाओं को राह देने का कार्य अभाविप ने किया । जिस प्रकार भागीरथी के अवतरण की भी एक पूर्व गाथा है वैसे ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विचार यात्रा की भी एक पूर्व पीठिका है ।
1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की घोषणा डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने विजयादशमी के दिन की । उसी संघ रूपी हिमखंड के रिसते रस से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की धारा का प्रस्फुटन हुआ है । विद्यार्थी परिषद हिमखंडों के समीप से ही निकली आजादी के बाद नए आशाओं के कुंड की तरह है । हमें देखने वालों को हम हिमखंड से कुछ अलग भी प्रतीत हुए परंतु मेरा मानना है कि हम सभी इसी हिमखंड के पदार्थ हैं जिसे हम कार्यकर्ता संघ विचार कहते हैं । अभाविप भी रा. स्व. संघ से प्रेरित है । छात्र संगठन के रूप में 9 जुलाई को अभाविप की स्थापना दिल्ली में हुई । 1948 में ही हमने काम करना शुरू कर दिया था । जब हमने काम करना शुरू किया तो चर्चा हुई कि हम क्यों काम करेंगे, इस विचार विमर्श और चर्चा के उपरांत यह तय हुआ कि हम राष्ट्रीय परिदृश्य पर काम करेंगे, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण हमारा लक्ष्य होगा । परिषद के कार्यक्रम का स्वरूप क्या हो, इस पर तय हुआ कि हमारा स्वरूप रचनात्मक होगा । कार्यकर्ताओं को राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित करना, समाज जीवन के लिए प्रेरित करना हमारा कार्य होगा । अभाविप शैक्षिक परिवार के रूप में कार्य करती है जिसमें शिक्षाविद, शिक्षक छात्र आदि होते हैं । विद्यार्थी परिषद ने जब कहा कि हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे तो विषय आया कि यह कैसे संभव होगा? 1970 में तय करके विद्यार्थी परिषद ने छात्रसंघ में भाग लिया। छात्रसंघ चुनावों में विद्यार्थी परिषद की भारी जीत हुई, चूंकि परिषद एक विचारधारा पर आधारित छात्र संगठन है । 1975-77 के बीच जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति में भाग लिया । आपातकाल के बाद चुनाव हुए जनता पार्टी की सरकार बनी । जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद चर्चा हुई कि जिन छात्र संगठन, युवाओं ने आंदोलन में भाग लिया उसकी भी सहभागिता हो । उनलोगों का मत था कि अब अलग से संगठन चलाने कि क्या जरूरत है? आप भी सत्ता का भागीदार बनिये लेकिन विद्यार्थी परिषद ने सत्ता का भागीदार बनने से इनकार कर दिया । 1978 – 82 तक अभाविप ने छात्रसंघ से दूरी बना ली लेकिन राष्ट्रीय विषयों पर हमेशा टिप्पणी करते रहे । साठ के दशक में हमने कहा कि छात्र कल का नहीं अपितु आज का नागरिक है। मत देने का अधिकार 18 वर्ष हो, जिसे बाद में सरकार ने माना और मत देने का अधिकार 18 वर्ष किया गया । 1973 में विद्यार्थी परिषद ने छात्रों के सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व पर प्रस्ताव पारित किया। उसी समय गुजरात के छात्रावास में मेस अनियमतता को खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ जो संपूर्ण क्रांति में बदल गया । 1977 में जेपी ने कहा था कि जेपी मूवमेंट से संघ और विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को हटा दें तो कोई आंदोलन ही नहीं था, कोई व्यक्ति नहीं था । आजादी के बाद विद्यार्थी परिषद ने कहा कि हम आजाद जरूर हुए हैं लेकिन कार्य नहीं हुआ है । विद्यार्थी परिषद ने इन कार्यों को पूरा करने के लिए अपने आयाम, प्रकल्प और अन्य कार्यों को खड़ा किया । उसी संकल्पना के साथ 1967 – 68 के समय हमने विदेशी छात्रों का सम्मान किया । 1978 में ग्रामोथान विद्यार्थी के साथ काम शुरू हुआ । अलग अलग संस्थानों में काम खड़ा किया । पूर्व में अभाविप में पूर्णकालिक रही गीता ताई कहती हैं कि 1967 में मुंबई इकाई में कोन्वोशन के मेले लगते थे लोग एक – दो रूपये की टिकट लेकर देखने आते थे । परिषद ने अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये आज अधिकांश निजी विद्यालय, डीम्ड यूनिवर्सिटी परिषद के इन कार्यों को फॉलो कर रहे हैं । हमारे किये गये कार्यों का समाज ने अनुकरण किया । इस तरह के प्रयोग करते – करते विद्यार्थी परिषद की पहचान एक सामाजिक संगठन के रूप में बन गई। 1966 में प्रा. यशवंत राव केलकर को पी. वी. आचार्य ने ट्रंक कॉल करके कहा कि तीन दिन के लिए पूर्वोत्तर के कुछ लोगों को लेकर आ रहे हैं । इसी तरह अंतर राज्य छात्र जीवन दर्शन (सील) यात्रा की शुरूआत हुई । 1985 में महाराष्ट्र के अंदर इंजनियरिंग के छात्रों के लिए डीपेक्स की शुरूआत हुई । इसी प्रकार अन्य राज्यों मे सृष्टि, फार्माविजन के कार्यो की शुरूआत हुई । जैसे – जैसे समय बितता गया आयाम खड़े होते चले गये । आज भले ही कई आयाम बन चुके हैं लेकिन इसकी नींव शुरूआती दिनों में ही अभाविप ने रख दी थी ।1986 में हमने 28 दिन की नर्मदा यात्रा शुरू किया, नर्मदा के जल को संग्रह कर उसे लैब में टेस्ट कर एनजीटी में दिया । बाद में नर्मदा को बचाने के लिए हमने केस फाइल किया, चर्चा के दौरान पता चला कि विद्यार्थी परिषद ने इस पर 1960-70 में भी इस पर कार्य कर चुकी है ।
विभिन्न पड़ावों को पार करती देश के सुदूर क्षेत्रों में भी अभाविप की नगर इकाई, महाविद्यालय व +2 विद्यालय में शाखा है । हम आज एक कार्यक्रम की अपील करते हैं तो बोम्डिला की बर्फवारी में विजय जुलूस तो अंडमान – निकोबार में छात्रों का प्रदर्शन होता है । मणिपुर में टेक्नोपॉल से सेल्फी खींची जाती है और कच्छ और जैसलमेर क रेतीले क्षेत्रों में सामाजिक अनुभूति के लिए विद्यार्थी जाते हैं । अलग – अलग कालखंड में विभिन्न परिस्थितियों, भिन्न – भिन्न, परिवेश में विचारों की कई मार्गों में से मौलिक तत्व लेते हुए अभाविप शिक्षा क्षेत्र की विभिन्न विचार यात्राओं में अलख जगाई है जिससे जानने के लिए देश की युवाशक्ति को ना 50 के दशक में ना आज भी कोई मुश्किल होती है । 2007 में बैंगलुरू में विद्यार्थी परिषद ने एक कार्यक्रम किया जिसमें अतिथि के तौर पर श्री श्री रविशंकर जी आये थे । कार्यक्रम की सफलता को देखकर उन्होंने कहा था कि यह कार्यक्रम यहीं पर खत्म नहीं होनी चाहिए, विद्यार्थी परिषद को आगे ले जाना होगा और हमने थिंक इंडिया के माध्यम से कार्य करना शुरू किया । थिंक इंडिया ने विधि, नीति, संसदीय जैसे कई इंटर्नशिप प्रोग्राम चलाये हैं । 1985 में वसुधैव कुटम्बकम की भावना लिये WOSY की शुरूआत की, इसके माध्यम से आज पूरा विश्व एक मंच पर आकर एक दूसरे के देशों की संस्कृति को साझा कर रहे हैं ।
बदलते दौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी अलग – अलग कार्य और आयाम खड़े किये । आज देखने की आवश्कता है कि कौन से ऐसे आईडिया है जो आगे भी चलेगें । कर्नाटक में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति को सुधारने के लिए स्कूल बेल नाम का इन्सएटिव चलाया जा रहा है, इसे देश के अन्य भागों में ले जाने की जरूरत है । राष्ट्रीय कला मंच के माध्यम से हम कला को आगे बढ़ाएगें । आयामों के माध्यम से उत्तरोत्तर विकास हुआ है । आने वाले समय में और भी कई प्रश्न खड़े होंगे हमें इसका उत्तर भी ढूंढकर समाधान देना होगा । आयाम – कार्य और गतिविधि पर विशेष जोर देना होगा । समाज में बंधुता, राष्ट्र की एकात्मता- अखंडता को अक्षुण्ण रखने की प्रतिबद्धता बढ़ाने पर हमें समर्पित होना पड़ेगा ।

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