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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और भारतीय स्त्री विमर्श

विश्व में स्त्री की परिभाषा भारत से भिन्न है । बाइबल के मुताबिक आदम की पसली से ईव को  तैयार किया गया है अतः वह सप्लीमेंट्री है, स्त्री का जन्म ही पुरुष को खुश करने के लिए हुआ है । ग्रीक विचार कहता है कि महिलाओं की खोपड़ी में कम स्विचस होते अतः वह पुरुष से कम ज्ञानी है । इसके मुताबिक जिस तरह  गुलाम मालिक के लिए होता है वैसे ही स्त्री पुरुष के लिए है । जबकि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ और ‘मातृदेवो भवः’ भारतीय संस्कृति का मूल है।
ममता यादव

19 वीं शताब्दी में फ्रेंच शब्द फेमिनिस्में से फेमिनिज्म की शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है । यह एक मात्र एक शब्द नहीं है बल्कि सिस्टम के विरूद्ध प्रतिक्रिया है । पूरे विश्व में विशेषतः यूरोप और अमेरिका में महिलाओ के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता था । महिलाओं के लिए कोई  मानवाधिकार और मत देने अधिकार नहीं प्राप्त नहीं था, ऐसी स्थिति में अंसतोष स्वाभाविक था । परिणामस्वरूप आंदोलन प्रारंभ हुआ । पहले धर्म (चर्च) से मुक्ति की बात की गई फिर स्टेट की मुक्ति । फ्रांस की क्रांति में सभी रिश्ते कॉन्ट्रैक्चूअल माने गए । प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इंडस्ट्री में जानें लगी क्योंकि पुरुष युद्ध में चले गये । ये मजबूरी थी कोई स्ट्रेटजी नहीं ।

मार्क्सवादी फेमिनिज्म के अनुसार क्रांति ही एकमात्र उपाय है । मार्क्सवादियों का मानना था कि सामाजिक क्रांति के बाद महिलाओं के जीवन में परिवर्तन निश्चित है ।  शिकागो विमन्स लिबरेशन के चैप्टर 1972 में समाजावादी फेमिनिज्म के रणनीति की व्याख्या की गई है । रेडिकल नारीवाद 1960, पुरूष विरोधी विचार के लिए जाना जाता है । इस विचारधारा के मुताबिक महिलाओं को पुरूष विरोधी व प्रतिद्वंदी के रूप में देखा जाता है । सिमोन द बोऊवर के द्वारा लिखित पुस्तक द सेकंड सेक्स तथा शूलमिथ फायर स्टोन द्वारा लिखित द डायलेटिक्स ऑफ सेक्स को पढ़ने से आपको ज्यादा जानकारी मिलेगी ।

विश्व में स्त्री की परिभाषा भारत से भिन्न है । बाइबल के मुताबिक आदम की पसली से ईव को  तैयार किया गया है अतः वह सप्लीमेंट्री है, स्त्री का जन्म ही पुरुष को खुश करने के लिए हुआ है । ग्रीक विचार कहता है कि महिलाओं की खोपड़ी में कम स्विचस होते अतः वह पुरुष से कम ज्ञानी है । इसके मुताबिक जिस तरह  गुलाम मालिक के लिए होता है वैसे ही स्त्री पुरुष के लिए है । जबकि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ और ‘मातृदेवो भवः’ भारतीय संस्कृति का मूल है। भारतीय संस्कृति में गार्गी, मैत्रेयी, अपाला, घोषा, सीता, शबरी, रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई,जीजाबाई, सावित्रीबाई तथा रानी मां गाइदिन्ल्यू इत्यादि ऐसे आदर्श हैं जिन्होंने शिक्षा के साथ ही युद्ध भूमि में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है ।

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वक्त आ गया है पश्चमी अवधारणा को नकार स्वामी विवेकानंद के बताए मार्ग पर चलें। अभाविप में महिलाओं ने सभी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं। आज राष्ट्रीय महामंत्री निधि त्रिपाठी जो हैं वह किसी आरक्षण के कारण नहीं बल्कि अपने गुण और क्षमताओं के आधार पर हैं। विद्यार्थी परिषद में छात्र-छात्रा में कोई भेदभाव नहीं होता। हमें विलियम शेक्सपियर की जगह विवेकानंद को पढ़ना चाहिए। शेक्सपियर ने कहा है कि महिलाएं प्रेम के लिए हैं, समझने के लिए नहीं है, जबकि विवेकानंद ने स्त्री-पुरुष को एक ही बताकर एकात्मकता का संदेश दिया। विवेकानंद को केवल फूल चढ़ाने के लिए आराध्य नहीं मानते, बल्कि उनकी शिक्षा के लिए मानते हैं। नारी सशक्तीकरण व वसुधैव कुटम्बकम के सपनों को विद्यार्थी परिषद ने साकार किया। आज महिलाएं समाज जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं । तकनीकी क्षेत्र, अंतरिक्ष विज्ञान, खेल, सेना, राजनीति, चिकित्सा आदि सभी स्थानों पर महिलाएं स्वयं की शक्ति को प्रदर्शित कर रही हैं। भारत को विश्वगुरू के पद पर आसीन करने में इस मातृशक्ति श्रृंखला का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा छात्रों को आत्मरक्षा के लिए तैयार किये जाने वाले प्रशिक्षण की बात करूं तो मिशन साहसी के तहत कोई ऐसा जिला नहीं है जहां पांच हजार छात्रओं का कार्यक्रम न हुआ हो। छात्राओं को अब यहीं रुकना नहीं है। लगातार आगे बढ़ना है। लड़कियां क्या खाएं, क्या पहनें इन बातों में उलझने के बजाए महिलाएं नेतृत्व कैसे करें और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने की ओर अग्रसर हों। उन्होंने कहा कि जब बेटी खड़ी होती है तो जीत बड़ी होती है। इसी सोच के साथ आगे बढ़ना है।

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काल परिवर्तन के साथ ही बाह्य आक्रांताओं के आगमन , उनके शासन एवं हमारी आंतरिक सामाजिक – राजकीय शिथिलता से समाज में कुप्रथाओं का प्रवेश हुआ । आज भारतीय समाज पुनः अपने मूल रूप में स्थापित होने की ओर अग्रसर है । विद्यार्थी परिषद् लगातार महिला समानता के विषयों में सक्रियता के साथ कार्य करता रहेगा । अतः हम सब यह संकल्प लें कि – हम महिलाओं की राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों की निर्णय प्रक्रिया में पूर्ण अवसर एवं उनकी सहभागिता बढ़ाने के लिए तत्पर रहेंगें । महिलाओं की शक्ति पर निसंदेह सम्मान दायित्व देंगे । घर शैक्षणिक संस्थानों एवं कार्य स्थल आदि सभी स्थानों पर हम महिला सम्मान के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे । महिलाओं में आत्मविश्वास जागृत कर उन्हें भय मुक्त बनाने हेतु ‘मिशन साहसी’ जैसे अभियानों का सतत आयोजित करते रहेंगे । दहेज कुप्रथा, बाल विवाह तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों को समाप्त करने हेतु स्वयं उनका बहिष्कार कर महिलाओं को पूर्ण सम्मान देंगे । अपने शिक्षण संस्थानों तथा अपने परिसरों को महिला सम्मान के द्वारा इस योग्य बनायेंगे कि वह समाज में एक आदर्श रूप में प्रतिस्थापित हो सके ।

 

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