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विद्यार्थी परिषद के प्रकाश स्तंभ प्रा. यशवंतराव केलकर

प्रा. मिलिंद मराठे

1947 के पूर्व समस्त भारतवंशियों का एकमेव कर्तव्य था विदेशी दासता की जंजीर भारत माता को आजाद करना। स्वाधीनता के पश्चात सबसे बड़ी चुनौती थी देश के युवाओं की ऊर्जा को नियोजित राष्ट्रीय पुनर्निमार्ण में लगाना। छात्रों की ऊर्जा को नियोजित करने, राष्ट्र के उत्थान में सबकी सहभागिता सुनिश्चित करने, राष्ट्र को परम वैभव पहुंचाने इत्यादि को केन्द्र में रखकर भारत के भविष्य के संवारने के उद्देश्य से वर्ष 1948 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य प्रारंभ हुआ। वर्ष 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का विधिवत पंजीयन हुआ। पंजीयन होने के बाद परिषद का कार्य बढ़ा। 1958 तक विद्यार्थी परिषद का काम देश के कुछ प्रमुख शिक्षा केन्द्रों तक ही सीमित था। 1958 – 59 के दौरान विद्यार्थी परिषद को यशवंत राव केलकर के रूप में एक ऐसा विश्वकर्मा मिला जिन्होंने परिषद को अखिल भारतीय स्तर पर न केवल गढ़ा अपितु अपितु अपनी रचनात्मकता से देश के मानस पटल पर बैठाया भी। वैसे तो विद्यार्थी परिषद को आगे बढ़ाने में असंख्य कार्यकर्ताओं का योगदान है लेकिन प्रा. यशवंत राव का स्थान विशिष्ट है।  यशवंत जी को जब विद्यार्थी परिषद में भेजा गया, तो संगठन ने नये आयाम प्राप्त किये। स्वाधीनता के पश्चात चल रहे भारतीय छात्र आंदोलन को प्रखर राष्ट्र भक्ति की एक नई दिशा प्रदान करने में स्वर्गीय यशवंत राव जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अनेक प्रकार के रचनात्मक, आंदोलनात्मक,  संगठनात्मक, उपक्रमात्मक आयामों द्वारा बहुमुखी विकास किया हुआ छात्र संगठन है । अभाविप के वृद्धि – विकास में अनेकों का योगदान रहा है परंतु यशवंत राव केलकर जी का योगदान विशेष महत्त्व का रहा है । विद्यार्थी परिषद और केलकर जी एक दूसरे के पर्याय हैं।  अभाविप की वास्तविक पहचान संगठन के समूह (Team) कार्यपद्धति विशेष रूप से है । Team Sprit, Team Work, Planning in Advance, Planning in Detail  आदि विद्यार्थी परिषद की पहचान बन गई है, इस पहचान का श्रेय श्रद्धेय यशवंत जी को जाता है। स्वर्गीय यशवंत राव केलकर जी की आज जन्म तिथि है। विद्यार्थी परिषद के कार्य की आप मानो नींव थे। 25 अप्रैल 1925 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक कटवे में आपका जन्म हुआ।  बचपन से ही वे बहुत बुद्धिमान परिश्रमी और नटखट थे।

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1945 से लेकर 1952 तक आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाशिक और सोलापुर जिले में प्रचारक रहे। भारत का विभाजन उसकी विभीषिका खंडित स्वतंत्र की प्राप्ति ऐसे बहुत ही महत्वपूर्ण काल खंड में आप प्रचारक थे। उन दिनों में आप हमेशा कहते थे कि ” It’s better to create dedicated minds than to create extremist heads”. प्रचारक जीवन से लौटने के बाद आपने M.A.(English) का अध्ययन पूर्ण किया। उसमें आपको स्वर्ण पदक मिला । 1956 से उन्होंने नेशनल कॉलेज बांद्रा मुंबई में अंग्रेजी विषय के प्राध्यापक के नाते कार्य शुरु किया। संघ की योजना के अनुसार 1958 -59 में आपने विद्यार्थी परिषद का दायित्व संभाला। असंख्य विद्यार्थियों के लिए आप सच्चे मित्र अनुपम तत्व वेत्ता और मार्गदर्शक थे। विभिन्न प्रतिभाओं एवं क्षमताओं के युवक – युवती के मन में देश और समाज की स्थिति के बारे में सजगता उत्पन्न करते हुए उनको राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के कार्य में संलग्न करने हेतु यशवंतराव जीवन भर अथक परिश्रम करते रहे।

यशवंतराव जी ने संगठन शास्त्र को मानवीय पहलू प्रदान किया। कार्यकर्ता जैसा है वैसा स्वीकारना और जैसा चाहिए वैसा बनाना। गुण- दोषों सहित कार्यकर्ता को स्वीकारना। गुण बढ़ाते जाना, दोष कम करते जाना यही उनका मंत्र था। यह उनकी दिशा थी। Once a Karyakarta always a Karyakarta वो कहते थे। उन्होंने कभी भी use and throw  का भाव किसी भी कार्यकर्ता के बारे में नहीं रखा। अपना काम मनुष्य का है यह ध्यान रखना चाहिए ऐसा वो कहते थे।

आप संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सार्वकालिक, आदर्श मित्र रहे। विद्यार्थी परिषद का प्रत्येक कार्यकर्ता केवल छात्र जीवन के 5/6 साल अभाविप में काम करे, पर्याप्त नहीं है। जीवन के आने वाले 25/30 वर्ष जीवन दृष्टि लेकर सामाजिक काम में सक्रिय रहना बहुत आवश्यक है। समाज के प्रत्येक क्षेत्र को हमें नेतृत्व देना है ऐसा वे कहते थे। उनसे प्रेरणा पाकर समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या आज हजारों में है यही उनके जीवन का सार्थक है।

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स्वर्गीय यशवंतराव केलकर एक आदर्श  सामाजिक कार्यकर्ता का जीता जागता उदाहरण थे। विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले अनेक व्यक्तियों के लिए आप प्रकाश स्तंभ जैसे थे। पारिवारिक जिम्मेवारी और सामाजिक कार्य को समान रुप से न्याय  देने के आप स्वयं उदाहरण थे। स्वर्गीय यशवंतराव जी के अथक परिश्रम, प्रखर ध्येय निष्ठा, संपूर्ण समर्पण और सुनियोजन के कारण ही आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सशक्त छात्र संगठन के रुप में सुस्थापित हुआ है।

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं।)

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