e-Magazine

शांति का राजमार्ग – सेवा

स्मिता व्यास

पूज्य स्वामी गोविंददेव गिरिजी महाराज द्वारा प्रतिपादित वाग्यज्ञ सार

आदर्श सेवाव्रति राष्ट्रसंत गाडगेबाबा, तुकडोजी महाराज, भगवान बुद्ध आदि  अनेक सेवाव्रतिओं के मूर्तीमंत उदाहरण हमारे सम्मुख है। मात्र सेवा इस  क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण और हनुमानजी यह दोनों सर्वश्रेष्ठ है..! कोई भी पदभार ना लेकर भी दोनों ही सर्वोच्च स्तर पर कार्यरत रहें।

भगवान श्रीकृष्ण ने  पत्रावलि उठ़ाई, झुठ़न साफ किया, गोमाता को चराया, सारथ्य किया..! इस प्रकार सेवारत रहकर भी सर्वसामर्थ्यवान भगवान ने गीता के माध्यम से बताया हुआ जीवन का तत्त्वज्ञान सर्वोपरी समझा जाता है ! हनुमान जी परमात्मा के प्रतिमूर्त है। सकलगुणनिधान है। निरपेक्षतः संपूर्ण समर्पण भावना से हनुमान जी सदैव सेवारत रहे।

लंका से वापस आने पर सभी को भेंटवस्तू देकर उनका सम्मान करने के पश्चात सीता मैय्या ने प्रभू रामचंद्र को हनुमानजी का स्मरण कराया। प्रभू ने सीतामाई को ही कुछ़ देने का निर्देश दिया। माता ने सुंदर कंठा हनुमान जी को दिया। प्रत्यक्ष भगवती द्वारा दिया गया वह प्रसाद हनुमानजी के कण्ठ में शोभायमान हुआ।

प्रभू रामजी ने मात्र हनुमान जी की कण्ठ भेट करके कहा, ‘तुम्हें दे सकूं ऐसा मेरे पास कुछ़ भी नहीं है। हमारे परिवार पर तुम्हारे अनंत उपकार है। तुने हम पर किए उपकारों की राशि मेरे स्मरण में है हनुमान.. यह ऋण हमपर ऐसा ही नित्य रहें.. !’ इतना कहकर भगवान ने हनुमानजी को अत्यंत प्रेम से गले लगाया। हनुमानजी नित्यस्वरूप से प्रभू के हो गए…..!

जीवन यदि इस प्रकार कृतार्थ करना हो, तो स्वयं संस्कारशील होकर व्यक्तिगत तथा परिवार, समाज- राष्ट्र और संपूर्ण विश्व के लिए सेवाव्रति हो जाएं..!!

See also  ABVP Burns Effigy of AISA in DU and JNU in Protest Against the Brutal Murder of Patna University Student by AISA Goons

सभी को व्यक्तिगत, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं समस्त विश्व कल्याण हेतु सदैव कार्यरत रहने की इच्छा तथा क्षमता प्राप्त हो और सर्वत्र शांति का लाभ हो, यही प्रभू चरण में प्रार्थना…!!

(लेखक विवेकानंद केन्द्र में पूर्णकालिक हैं।)

×
shares