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 कोरोना महामारी – चुनौती के साथ सुअवसर

सौरभ उनियाल

पूरी दुनिया आज कोरोना वायरस की चपेट में है, अमरीका, इटली, स्पेन जैसे कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था व स्वास्थ्य व्यवस्था का ढांचा इस महामारी से लड़ने में ध्वस्त हो गया है। इसी बीच वैश्विक मीडिया समेत सभी देशों की दृष्टि दो बिंदुओं पर टिकी है।

पहला, यह कि जिस चीन के “वुहान” शहर से यह महामारी शुरू हुई उससे चीन के औद्योगिक व व्यापारिक शहरों “बीजिंग” और “शांघाई” से उसकी दूरी 1152 किलोमीटर व 839 किलोमीटर है । परन्तु वहाँ इस महामारी का कोई असर नहीं और वे सामान्य रूप से अपनी विकास की गति बनाए हुए हैं दूसरी ओर जो देश इस शहर से 15000 किलोमीटर व उससे भी ज़्यादा दूरी पर हैं उन देशों में मौत का मातम पसरा हुआ है। साथ ही चीन ने अब उस शहर और आस पास के क्षेत्रों में lock down से स्थिति पर न सिर्फ काबू पा लिया है बल्कि इस महामारी का इलाज भी खोज लिया है। सब को इस चित्र के सामने आते ही चीन पर शंका हो रही है कि दाल में ज़रूर कुछ काला ही नहीं बल्कि पूरी की पूरी दाल ही काली है।

दूसरे जिस बिंदु पर विश्व आश्चर्यचकित है वह यह है कि दुनिया की दूसरी बड़ी जनसंख्या का देश “भारत”, जिसकी सीमाएं चीन से लगती हैं और आबादी का घनत्व भी विश्व में सर्वाधिक है उस देश में नाममात्र के मरीज सामने आए हैं। ऐसा भी नहीं कि भारत के पास कोई उच्च स्तरीय स्वास्थ्य ढांचा हो जिससे वे मरीजों को शीघ्र ठीक कर अपने आंकड़े घटा के बता रहा हो , जिन देशों में इस महामारी का कहर सर्वाधिक बरपा है उनके पास विश्व का सबसे आधुनिक स्वास्थ्य ढांचा है फिर भी क्यों समीप के भारत में इस महामारी का असर उस अनुपात में नहीं पड़ा जैसा दूर देशों पर पड़ा है ।

पहले बिंदु के विषय में शीघ्र होने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की COVID-19 समिट में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर विस्तृत चर्चा से पूर्व कुछ कहना तर्कसंगत नहीं होगा। इसलिए हम दूसरे बिंदु पर विमर्श कर यह जानने की कोशिश करेंगे कि वैश्विक महामारी के इस वर्तमान दौर में आखिर भारत क्यों और कैसे इसे चुनौती को अवसर में परिवर्तित कर सकता है।

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हाल फिलहाल में यह चर्चा तब प्रकाश में आई जब महामारी से भयभीत दुनिया भर के शक्तिशाली देशों के प्रधानों ने हाथ मिलाकर अभिवादन करने के स्थान पर भारत की सनातन परम्परा के वाहक “नमस्ते” को चुना । यह अब तक का दूसरा अवसर था जब भारत की जीवन पद्धति से संबंधित किसी अंग को ” योग ” के बाद न सिर्फ अपनाया बल्कि दूसरों को भी अपनाने की सलाह दी गई । कोरोना महामारी छूने से फैलती है और पश्चिमी देशों में, अभिवादन करने के तौर तरीकों में छूना स्वाभाविक रूप से शामिल रहा है यह एक बड़ा कारण है।

एक तरफ तो विशेषज्ञ यह बता चुके हैं कि कोरोना वायरस के कीटाणु 2-3 दिन तक पीड़ित के गले में ही रहते हैं फिर साँस लेने वाली नली के रास्ते फेफड़ों तक पहुँचते हैं। गले तक के कीटाणु को तो ठीक किया जा सकता है परन्तु एक बार जब यह फेफड़ों तक पहुँच गया तो ठीक होना मुश्किल है  दूसरी ओर भारत की 68 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जिसकी जीवन शैली आज भी पुरानी है। वे आज भी हाथ नहीं मिलाते व अपनी दिनचर्या में अदरक, सौंठ, लहसुन, काली मिर्च, लौंग आदि का उपयोग करते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है जिसके चलते किसी भी प्रकार के हानिकारक कीटाणु व जीवाणु शरीर को नुकसान पहुंचाने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं। यह मात्र कोई संयोग नहीं है, बल्कि भारत की जीवन शैली की प्रत्येक बात हमारे पूर्वजों द्वारा अनुभव के आधार पर विकसित हुई है, प्रमाणिक व सिद्ध है।

भारत में 32 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है, लेकि नउसाक भी एक बड़ा वर्ग ग्रामीण जीवन शैली को अपनाए हुए है। जबकि 99 प्रतिशत कोविड-19 पीड़ित शहरी क्षेत्रों के हैं जो दो प्रकार के हैं । एक वे जो विदेश से संक्रमित होकर भारत आए हैं और दूसरे वे जो उनसे संपर्क में आने के बाद संक्रमित हो गए है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च की “जनता कर्फ्यू ” की अपील की तो शाम 5 बजे तक सभी ने उसे बड़े अनुशासन से लिया परन्तु शाम के 5 बजते ही कई शहरों में लोग भारी भीड़ में इस तरह खुशी मनाते सड़कों पर दिखाई दिए मानो भारत ने कोई क्रिकेट का वर्ल्डकप जीत लिया हो, इससे यह साफ हो गया कि एक बार की गम्भीर अपील से 80 प्रतिशत लोग तुरंत ही अनुशासन में आ सकते हैं, परन्तु शेष 20 प्रतिशत लोगों के लिए कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है। 24 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिन के ” संपूर्ण लॉक डाउन ” की घोषणा के बाद से ही, सभी राज्यों में पुलिस ने कठोरता के साथ मोर्चा संभाला और 2 दिन में स्थिति को पूर्ण रूप से अपने नियंत्रण में ले लिया। इतनी बड़ी घनी जनसंख्या को इतने कम समय में नियंत्रण में ले लेने के बाद विश्व बड़ा आश्चर्यचकित था ।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आगे चलकर जब देश की जनता से जैसे ही 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट के लिए घर में अंधकार कर दीप प्रज्वलित करने अथवा इसके स्थान पर मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल की फ़्लैश लाइट जलाने की अपील की तो देश में दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं आने लगीं । एक विपक्ष से, जिनका आरोप था कि प्रधानमंत्री देश में आई कोरोना महामारी के संकट पर गंभीर नहीं है और जनता को “इवेंट” में उलझाना चाहते हैं। दूसरी ओर देश के सभी ज्योतिषियों, अंक गणितज्ञों, सनातन धर्म गुरुओं ने इसे वैदिक उपाय बताते हुए राष्ट्र के लिए लाभकारी बताया। ठीक इसी प्रकार 22 मार्च के “जनता कर्फ्यू” में शाम 5 बजे भी अपने घर की छतों या बालकनियों से ताली और थाली बजाने की अपील की थी तब भी सभी ज्योतिषाचार्यों ने इसका वैदिक महत्व समझाते हुए बताया था कि 22 मार्च को अमावस्या है और सनातन धर्म में इसे नकारात्मक शक्तियों का दिन मानते हैं । इसी हेतु यदि उस समय घण्टियों अथवा वैसी ही ध्वनि उस समय गुँजायमान होती है तो उन नकारात्मक शक्तियाँ का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

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विश्व हमारे अनेक विषयों पर शोध कर उनके आगे नतमस्तक हो चुका है, जैसे योग, आयुर्वेद,  व्यवहार में स्वच्छता, संस्कृत आदि । परन्तु जब भारत कोरोना नामक इस महामारी से बिना किसी विशेष हानि के उभर कर आ जाएगा तो फिर पूरा विश्व भारत की सम्पूर्ण सनातन जीवन पद्धति को समझना चाहेगा, समझकर उसे अपनाना चाहेगा और अंत में उसे अपनी अगली पीढ़ी को विरासत में देना चाहेगा। वह दिन दूर नहीं होगा जब विश्व के किसी भी देश में जब कोई भी कार्य होगा तो उसकी तिथि भारतीय पंचाग को देख कर निर्धारित की जाएगी।

यह सब भले ही आज स्वप्न सा लग रहा हो परन्तु यही सत्य है । लॉर्ड मैकॉले की शिक्षा पद्धति से पढ़े भारतवासियों में जो हीनभाव( स्वयं को हमेशा दूसरों से कम आंकना) है वह उन्हें इस बात को सरलता से स्वीकार नही करने देगा, यह ठीक उसी प्रकार है कि भारत में जन्मा योग जब पश्चिम से योगा बनकर आया तो ही वह भारतीयों को आकर्षक लगा। इस स्वप्न को साकार करने के लिए सर्वप्रथम और अनिवार्य रूप से भारत की 135 करोड़ जनता को एकजुट हो, अपने सनातन स्वाभिमान को जगाना होगा । इस अवसर के संकेत तभी से मिलने शुरू हो जाएंगे जब भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो शक्ति चीन से छीनकर मिल जाएगी। और यह कार्य भारत के निवेदन पर नहीं अपितु विश्व के आग्रह पर होगा । फिर वो दिन दूर नहीं होगा जब भारत देश पुनः विश्व गुरु बन संसार को समृद्धि के साथ साथ शांति और संतुष्टि का मार्ग अपनी आध्यात्मिक शक्ति से प्रशस्त करेगा।

(लेखक पूर्व में राष्ट्रीय कला मंच के राष्ट्रीय संयोजक रह चुके हैं।)

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