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पर्यावरण संरक्षण में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर भारत : प्रो. वेद प्रकाश नंदा

थिंक इंडिया एवं अधिवक्ता परिषद द्वारा आयोजित वेबिनार में पद्मभूषण प्रोफेसर वेद प्रकाश नंदा ने नेशनल, प्रीमियर व अन्य संस्थानों के छात्रों एवं अधिवक्ताओं, प्राध्यापकों के साथ किया संवाद, पर्यावरण से जुड़ें कई अनछुये पहलुओं को किया उजागर
छात्रशक्ति डेस्क

नई दिल्ली। थिंक इंडिया और अखिल भारतीय अधवक्ता परिषद के दवारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए प्रख्यात पर्यावरणविद पद्मभूषण प्रोफेसर वेद प्रकाश नंदा ने कहा कि औद्योगिकरण एवं वैश्वीकरण की दौड़ में पर्यावरण का किस तरह ह्रास हुआ है इसकी पूरी दुनिया परिचित है। उन्होंने बताया कि विकसित देशों द्वारा जलवायु की बदलती तस्वीरें देखकर, विकास की ओर बढ़ रहे, गरीबी से लड़ाई लड़ रहे विकासशील देशों की गति को शिथिल करने का प्रयास किया गया। प्रोफेसर नंदा है थिंक इंडिया और अधिवक्ता परिषद के द्वारा “भारत के लोकाचार के प्रकाश में पर्यावरण कानून के नियमों में भारत का नेतृत्व” विषय पर आयोजित वेबीनार मे नेशनल, प्रीमियर व अन्य संस्थानों के कानून के छात्रों,  अधिवक्ताओं,  प्रोफेसरों,  राष्ट्र की छात्र शक्ति तथा अन्य जिज्ञासुओं को संबोधित कर रहे थे।

विदित हो कि प्रोफ़ेसर वेद प्रकाश नंदा साहब को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानूनों के क्षेत्र में ज्ञान के सरिता का स्वामी माना जाता है। उनसे नवीन वेबिनार के माध्यम से जुड़ना दृष्टा समूह के लिए एक अतुल्य अवसर था, जहां छात्रों को उनसे सीधे चर्चा करने हेतु एक मंच प्रदान किया गया। प्रोफेसर नंदा ने चर्चा का आरंभ अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शासनकाल से जुड़े विभिन्न बिंदुओं से किया, इस दौरान उन्होंने वैश्विक जलवायु परिवर्तन तथा उसमें भारत की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान में सम्मिलित डी.पी.एस.पी, मौलिक दायित्वों तथा सरकार की जिम्मेदारियों में भी पर्यावरण के प्रति चेतना स्पष्ट है। विश्व भर ने औद्योगिकरण व वैश्वीकरण  की  दौड़ में अक्सर विकास को पर्यावरण के विनाश में भी परिभाषित होते देखा है। प्रोफेसर नंदा ने बताया कि किस प्रकार विकसित देशों द्वारा जलवायु की बदलती तस्वीरें देखकर, विकास की ओर बढ़ रहे, गरीबी से लड़ाई लड़ रहे विकासशील देशों की गति को शिथिल करने का प्रयास किया गया। ऐसे में वर्ष 1972 का स्टॉकहोल्म कन्वेंशन गवाह है, जो यह बताता है कि किस प्रकार विश्व भर के 77 विकासशील देशों का नेतृत्व करते हुए भारत ने अपनी बात बुलंदी से रखते हुए कहा था कि विकासशील देश गरीबी से लड़ रहे हैं, विकसित देश जिम्मेदार हैं और उन्हें इस समस्या पर पहले कार्य करना चाहिए। किंतु बढ़ते समय के साथ भारत में भी विकास मे गति और उद्योग वृद्धि होती गई।

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श्री नंदा की मानें तो मल्टीलेटरल मंच वर्ष 1992 की अर्थ सम्मिट के बाद से भारत से अधिक अपेक्षा लगाने लगे थे। वर्ष 2000 के मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के बाद से तो यह कहानी नया रुख लेने लगी थी। भारतीय राष्ट्रीय प्रशासन भी यह समझ चुका था कि अब विकास को विनाश नहीं बल्कि विश्वास के भाव के साथ परिभाषित करने की आवश्यकता है। भारत अब आगे बढ़ रहा था, अधिक ताकत अधिक जिम्मेदारियां लेकर आती हैं तथा अब भारत को भी अपनी नीति और चलन को वैश्विक रीति से और जोड़ने की आवश्यकता थी। और उसने ऐसा करना प्रारंभ भी किया, न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन की ओर कदम बढ़ाएं।

प्रोफेसर साहब का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानूनों के प्रोफेसर की दृष्टि से वे नरेंद्र मोदी जी के आने के बाद भारत की भूमिका को मूल रूप से बदलते हुए देखते हैं। यह तो स्पष्ट ही है कि किस तरह विकासशील देशों का नेतृत्व करने वाला भारत आज पर्यावरण से जुड़े कई विषयों पर विश्व का नेतृत्व करता दिखता है। पेरिस समझौते  के अवसर पर किए वायदों व ऊर्जा के अक्षय स्रोत आदि विषयों पर तो भारत को विश्व भर ने सराहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी को सम्मानित भी किया गया। जहां जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्यवाही व फाइनेंस की भी कमी है ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री वैश्विक पटल पर इससे लड़ाई की बात कर अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने को लेकर उसकी रूपरेखा को रखते हैं। बकौल प्रोफेसर नंदा आज भारत धीरे-धीरे इनर्जी हंगरी देश बनते जा रहा है, ऐसे में नरेंद्र मोदी जी द्वारा लिए गए निर्णय मजबूत हैं, अटल हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र के साथ-साथ राजस्थान और गुजरात व छत्तीसगढ़ जैसा कोयला आधारित  राज्य भी इस लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हैं। परिवहन क्षेत्र में विद्युत आधारित बनना भी सराहनीय है। ऐसा कहने के साथ-साथ प्रोफेसर साहब ने आने वाले समय में जल समस्याओं की ओर चेताते हुए जल शक्ति अभियान को एक अहम कड़ी बताया। उन्होंने उज्जवला योजना की ओर संकेत करते हुए गैस वितरण को भी प्राण रक्षक कदम बताया है।

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कहते हैं वर्तमान मॉडर्न कहे जाने वाले काल में भी ज्ञान-विज्ञान की पराकाष्ठाओं ने भी अक्सर स्वयं को भारतीय प्राचीन ज्ञान के महासागर की गहराइयों में पाया है। अंत में उन्होंने भारत की नव ऊर्जा में, पर्यावरण क्षेत्र में भारत के नवीन कदमों के पीछे खड़ी उसकी सहस्त्रों वर्ष पुरानी संस्कृति का विवरण देते हुए चर्चा की। प्रोफेसर नंदा ने बताया कि त्याग व हिंसा जैसे आदर्शों से पूर्ण यह भारत आरंभ से ही यह मानता आया है कि अन्य जीवों व तत्वों के साथ वह एक ही इको सिस्टम का सदस्य है। भारतीय अपनी नदियों, पर्वतों व वनों को पूज्य (सेव्य) मानते हैं। सबके सम अधिकार में विश्वास रखते हैं। हमारे यही संस्कार व नेतृत्व कोविड-19 वैश्विक महामारी से उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों को चीरते हुए विश्व पटल पर हमें पर्यावरण रक्षा में भी नेतृत्व प्रदान करेंगे। उन्होंने अंततः विद्यार्थी परिषद का विशेषकर धन्यवाद करते हुए विभिन्न प्रीमियर व नेशनल शिक्षा संस्थानों के छात्रों के प्रश्नों का उत्तर दिया तथा इस मंच से जुड़ने में हुई प्रसन्नता को व्यक्त किया। जिसके पश्चात अधिवक्ता परिषद की ओर से विद्वान अधिवक्ता मीरा खड़ाक्कर जी द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव रखा गया व संचालक आयुष रस्तोगी जी द्वारा इस सत्र का समापन किया गया। ऐसे सत्रों, विद्वानों के दृष्टिकोण व राष्ट्र की दिशा से यह स्पष्ट साध्य है कि विकास के साथ विकृति के स्थान पर संस्कृति के समावेश को प्राथमिकता देकर भारत पुन्ह: विश्व के नेतृत्व करने की राह पर अग्रसर है।

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