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गणतंत्र दिवस का महत्त्व

प्रियांक देव

भारतीय इतिहास में 26 जनवरी का महत्त्व केवल इसलिए नहीं है कि यह हमारे तीन राष्ट्रीय पर्वों में से एक है, या केवल इस कारण भी नहीं कि इसी दिन भारतीय संविधान को अंगीकार किया गया। इसके महत्त्व को समझने के लिए 20 वर्ष पीछे की पृष्ठभूमि समझनी होगी। क्योंकि किसी विशिष्ट कारण के बिना 26 नवंबर 1949 को ही तैयार हो चुके संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की प्रतीक्षा हो ही नहीं सकता। बात थी 1930 में लाहौर में रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन की। कांग्रेस का नरम दल अंग्रेजी सरकार के सामने अपनी मांगे रखते हुए थक चुका था, ब्रिटिश सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी। ऐसे में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज, संपूर्ण स्वाधीनता का नारा देते हुए देश को स्वाधीन स्वीकार कर लिया गया। इसके पश्चात् 26 जनवरी 1930 से ही देश स्वयं को स्वाधीन स्वीकार कर चुका था। इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष स्वाधीनता दिवस के नाम से मनाया जा रहा था। जब 15 अगस्त 1947 को जब देश स्वाधीन हुआ तब संविधान निर्माताओं के मन में यह बात घर कर गई कि रावी नदी की उस घटना को जन-जन तक पहुंचना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों तक प्रथम स्वाधीनता दिवस का संदेश पहुंच सकें। हस्ताक्षर किए संविधान को लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया और भारत गणतंत्र होने के साथ बना विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र।

आज भी देशवासियों के मन में 21 तोपों की सलामी के साथ स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रध्वज फहराकर भारत को गणतंत्र घोषित करने की स्मृतियां अंकित है। उन्होंने देश के नाम विशेष संदेश में कहा था कि हमें आज के दिन के ऐसे सपने को साकार करने के लिए खुद को समर्पित करना चाहिए। जिसने हमारे राष्ट्र पिता और स्वतंत्रता संग्राम के कई नेताओं और सैनिकों को अपने देश में एक वर्गहीन, सहकारी, मुक्त और प्रसन्नचित्त समाज की स्थापना के सपने को साकार करने की प्रेरणा मिली। हमें यह याद रखना चाहिए कि आज का दिवस आनंद मनाने की तुलना में समर्पण का दिन है। श्रमिकों, कामगारों परिश्रमियों और विचारकों को पूरी तरह से स्वतंत्र, खुश और सांस्कृतिक बनाने के भव्य कार्य के प्रति समर्पण करने का दिन है।

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देखा जाए तो यह गणतंत्र दिवस अपने आप में काफी विशेष है। देश, स्वाधीनता के 75 वर्ष की यात्रा तय कर आजादी का अमृत महोत्सव माना रहा है। वहीं नेताजी की 125 वीं जयंती मना रहा है। बीते कई दशकों से नेता जी को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला परंतु 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा इंडिया गेट के पास नेताजी की प्रतिमा को स्थापित करने एवं नेताजी के जन्मदिवस को पराक्रम दिवस के रूप में घोषित करने से भारतीयों में नेताजी सुभास चन्द्र बोस की कृतित्व को जानने की लालसा बढ़ी है। आज देश अपने गौरव को लेकर आगे बढ़ रहा है। किसी भी राष्ट्र को सशक्त बनने के लिए अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को याद रखना जरूरी है। भारतीय संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है राजपथ पर विभिन्न प्रदेशों की झांकियां। इनसे प्रेषित संदेश पूरे देश के कोने-कोने तक पहुंचता है और इसकी अखंडता को गुंजायमान करता है।

वास्तव में आज का दिन विमर्श का दिन है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का संदेश 73वें गणतंत्र दिवस पर भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने ठीक ही कहा था कि आज का दिन खुशियों के साथ-साथ समर्पण का दिवस भी है।

(लेखक, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद सदस्य हैं एवं उपरोक्त वर्णित तथ्य उनके निजी विचार हैं।)

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