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छात्रशक्ति अगस्त 2022

संपादकीय,
भारत की स्वाधीनता के 75 वर्ष। साथ ही देश विभाजन के भी 75 वर्ष। इतिहास की सबसे भीषण
त्रासदी माने जाने वाले करोड़ो लोगों के विस्थापन तो नवनिर्मित पाकिस्तन द्वारा भारत पर आक्रमण
के भी 75 वर्ष। खट्टी, मीठी और कड़वी यादों के साथ जीते और जूझते पग-पग आगे बढ़ते
संकल्पशील समाज की अविरत यात्रा का यह आख्यान है।
स्वाधीनता की इस यात्रा का प्रारंभ ही हिंसा और बर्बरता के ऐसे अमानवीय दौर के साथ हुआ जिसका
आधुनिक इतिहास में कोई उदाहरण नहीं। 1962 में चीन के हाथों शर्मनाक पराजय के 60 साल तो
विश्व इतिहास के सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पण के बाद पाकिस्तान को विभाजित कर बांग्ला देश के
निर्माण के 50 साल भी इस वर्ष के लेखे में हैं। भारतीय सैनिकों द्वारा देश की रक्षा के लिये सीमा
पर बलिदान की अप्रतिम घटनायें हैं तो देश की एकता, अखण्डता और लोकतंत्र के संरक्षण के लिये
जूझते युवाओं की संघर्षगाथा भी स्वाधीन भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है।
देश जिस स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है उसका संबंध यूरोपीय औपनिवेशक शक्तियों से
है। वास्को द गामा के रूप में पहले यूरोपीय आक्रान्ता के आगमन के साथ ही भारतीय प्रतिरोध का
इतिहास प्रारंभ होता है। पुर्तगालियों के अतिरिक्त फ्रांसीसी, डच, और इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनियाँ
व्यापार के बहाने भारत आती गयीं और यहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करती गयीं। पहली तीन
शक्तियों का सफल प्रतिरोध भारत ने किया और पुर्तगाली गोवा तथा फ्रेंच पांडिचेरी तथा चंदननगर
तक सीमित होकर रह गये। डचों को राजा मार्तण्ड वर्मा ने पूरी तरह निकाल बाहर किया। निरंतर
संघर्ष से भारत की शक्ति भी क्षीण हुई जिसका लाभ उठा अंग्रेज भारत के एक बड़े भू-भाग पर
नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे।
कतिपय इतिहासकारों ने इसे आपसी फूट और पराजय का इतिहास बताने की कोशिश की है किन्तु
इतिहास साक्षी है कि यह निरंतर संघर्ष और अंततः विजय की गाथा है। पूरा नहीं अपितु लगभग
आधे भारत को ही अंग्रेज अपने नियंत्रण में ले सके थे। शेष भारत के राजाओं के साथ उनकी संधियां
थी। यह भी उल्लेखनीय है कि इन राजाओं ने स्वेच्छा से स्वाधीन भारत में अपनी संप्रभुता का विलय
किया परिणामस्वरूप हम आज के भारत का मानचित्र देखते हैं।
अंग्रेजों ने भारत को काट कर न केवल पाकिस्तान का निर्माण किया बल्कि अनेक प्रश्नों को
अनिर्णीत छोड़ा जिन्होंने आगे चल कर समस्या का रूप लिया और देश की विकास यात्रा में रोड़ा बने।
राजनैतिक प्रतिद्वंदिता और वैचारिक विरोधों के बाद भी एक राष्ट्र के रूप में स्वाधीन भारत ने एक
लम्बी दूरी तय की है। हमने त्याग और बलिदानों के बल पर स्वतंत्रता हासिल की किन्तु तंत्र पर
अभी भी औपनिवेशिक छाया है। इस तंत्र को भारतीय आधार से जोड़ने के पश्चात ही हम सही अर्थों
में स्वतंत्र कहला सकेंगे। स्वाधीनता का लक्ष्य हमने प्राप्त किया है, स्वतंत्रता की दिशा में अभी और
प्रयास करने बाकी हैं जिसके लिये अभाविप संकल्पबद्ध है।

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स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना सहित,
आपका
संपादक

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