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भारत सरकार द्वारा स्कूली एवं उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम सामग्री को 22 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का निर्देश स्वागत योग्य एवं अभिनंदनीय

छात्रशक्ति डेस्क

केंद्र सरकार द्वारा सभी विद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों को अगले तीन वर्षों में पाठ्यक्रम एवं अध्ययन सामग्री को, संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्णित 22 भारतीय भाषाओं में छात्रों के लिए डिजिटल रूप में उपलब्ध कराने के लिए दिया गया निर्देश स्वागतयोग्य एवं अभिनंदनीय है। भारत में भाषाई विविधता देश की समृद्ध सांस्कृतिकता का अभिन्न अंग है। अभाविप का मत है की इस बहुप्रतीक्षित निर्णय से छात्र अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में भी स्कूली एवं उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे जिससे छात्रों में विषय की अधिक समझ एवं अधिक स्पष्ट अभिव्यक्ति के अवसर मिलेंगे। अभाविप का मानना है की इससे छात्रों के लिए अधिक अवसरों के द्वार भी खुल सकेगा।

बीते दिन केंद्र सरकार द्वारा सभी विद्यालयों एवं उच्च शिक्षा नियामकों जैसे यूजीसी, एआईसीटीई, इग्नू , आईआईटी, केंद्रीय विद्यालयों एवं एनआईटी जैसे शैक्षणिक सस्थानों की अध्ययन सामग्री को डिजिटल रूप में 22 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए है। अभाविप ने इस निर्णय का स्वागत किया है। भारत में अधिकांश पाठ्यक्रम एवं पाठ्य सामग्री अंग्रेजी माध्यम में ही उपलब्ध है। जिससे भारत के दूर दराज इलाके से आने वाले प्रतिभावान अधिकतर छात्रों को भाषाई अवरोध के चलते अपने पाठ्यविषयों को समझने में दुर्गमता झेलनी पड़ती है। नवीन राष्ट्रीय शिक्षा निति में भी इस भाषाई अवरोध को दूर करने एवं भारतीय भाषाओं के प्रसार के सुझाव दिए गए हैं। इस फैसले से छात्र अपनी क्षेत्रीय भाषा में भी अपनी रूचि के विषय पढ़ सकेंगे एवं उन विषयों में अपनी अधिक पकड़ बनाते हुए अधिक विशेषज्ञता प्राप्त कर पायंगे। यह मुहिम भारतीय भाषाओं का महत्व पुनः बढ़ाने के साथ ही, भारतीय भाषाओँ की शिक्षा प्राप्त करने वाले विशेषज्ञों के लिए रोजगार के असीम अवसरों के द्वार भी खोलेगा।

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अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी निर्दिष्ट है कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा के अवसर उपलब्ध होने चाहिए।शिक्षा मंत्रालय का यह निर्णय भारत की समृद्ध भाषाई सम्पदा के महत्व को बढ़ाने का कार्य करेगा। अपनी मातृ एवं क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन करने एवं भाषाई बाधा दूर होने से छात्र अपने पाठ्य विषयों से अधिक सामंजस्य और समझ बना सकेंगे एवं भारत के विकास में और प्रभावी तरीके से योगदान दे सकेंगे। इस फैसले से भारतीय भाषाओं के विशेषज्ञों के लिए रोजगार के सकारात्मक अवसरों के द्वार भी खुलेंगे।

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