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आज़ादी ! टुकड़े वाली या सुभाष वाली ?

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती विशेष
धनश्याम शाही

भारत में इस समय सबसे ज्यादा बहस राष्ट्रवाद और उसके स्वरुप क्या होना चाहिए, इसको लेकर है । इस समय का राष्ट्रवाद वह राष्ट्रवाद नहीं है जिसकी कल्पना भगत सिंह और सुभाष बाबू ने की थी ऐसा कहकर कुछ लोगों द्वारा सामान्य नागरिकों को भड़काया जा रहा है। यह सब वह लोग हैं जो अपने आपको क्रांतिकारी कहते हैं लेकिन इनको इस बात की थोड़ी भी जानकारी नहीं है कि आखिर क्रांति किसको कहते  ? यह छद्म क्रांतिकारी भोले भाले लोगों को बरगलाते हैं, भड़काते है कि देश में ये समस्या है, वो समस्या है  इसका हल होना चाहिए। इसके खिलाफ आवाज़ उठाई जानी चाहिए और इस तरह उनको बरगलाते हुए एक दिन बन्दूक पकड़वा कर नक्सली बनने पर मजबूर कर देते हैं और फिर उनको देश के खिलाफ खड़ा कर देते हैं। इसी राष्ट्रवाद पर सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था-

राष्ट्रवाद न तो संकुचित है न स्वार्थी और न ही आक्रामक। यह मानवजाति के उच्च आदर्शों – सत्यम् शिवम् सुन्दरम् से प्रेरणा ग्रहण करता है। भारतीय राष्ट्रवाद सत्यता, ईमानदारी, मानवता, सेवा एवं त्याग की शिक्षा देता है।

–         महाराष्ट्र प्रांतीय कांफ्रेंस पूना में अध्यक्षीय भाषण (3-5-1928)

इसी तरह से इन छद्म लोगों के द्वारा क्रांति के एक नारे “आज़ादी” का प्रयोग उसके बिलकुल विपरीत अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है। यह नारा वर्तमान समय में ऐसे प्रयोग किया जा रहा है जैसे आज़ादी किसी रेवड़ी का नाम है और वो कहीं सड़क पर मिल रही थी और इनको नहीं मिली। इस आज़ादी के नारे में किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इस नारे की आड़ लेकर इसमें जो शब्द प्रयोग किये जा रहे उन पर भी ध्यान देना जरुरी है “कश्मीर मांगें आज़ादी, जिन्ना वाली आज़ादी” आखिर इनका अर्थ क्या है ?

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सुभाष चन्द्र बोस ने नवयुवक सभा कलकत्ता में भारतीय संस्कृति पर बोलते हुए कहा था कि हमें नई परंपरा को अपनाते हुए पुरानी परम्पराओं को भी आत्मसात करना होगा। वेदों की ओर लौटना चाहिए, हमारे पास लोगों को देने के लिए बहुत कुछ है जिसकी ओर हमें ध्यान देना चाहिए। लेकिन आज कोई भी व्यक्ति या संस्था अगर अपनी संस्कृति, परम्परा के विषय में बात करती है तो उसे रुढ़िवादी और पिछड़ा कहकर शर्मिंदगी महसूस करायी जाती है।

इनके लिए यज्ञ करना पर्यावरण को प्रदूषित करना है जबकि सिगरेट पीना ओजोन परत को क्षय होने से बचाना। इनके लिए किसी के पैर छूना हिंदुत्व की विचारधारा को लागू करना है जबकि “किस ऑफ़ लव” बढ़ते प्रेम की निशानी। इनके लिए इनके विरोध में बोलना संविधान की हत्या है जबकि अगर ये प्रोफ़ेसर को मारें, लड़कियों का यौन शोषण करने तो वो इनका मौलिक अधिकार।

वर्तमान में इस समय भारत सरकार NRC लाने के विषय में सोच रही है इसको हमें आज़ादी की लड़ाई की तरह ही देखना चाहिए। जिस तरह ब्रिटिश घुसपैठियों को निकालने के लिए हमें संघर्ष करना पड़ा था और इसके लिए अपने ही घर के कुछ जयचंदों के खिलाफ लड़ना पड़ा था। उसी तरह से इस समय ये अवैध घुसपैठिये भारत के अन्दर बैठकर हमारी संपदा का उपयोग करके हमें अन्दर से खोखला करने की कोशिस कर रहे हैं जिनसे हमें लड़ना होगा। इस कोशिस में उनका साथ देने का काम कर रहें है आज के जयचंद। यह जयचंद अर्बन नक्सल, टुकड़े टुकड़े गैंग के रूप में पूरे भारत में मौजूद है जो अपने फायदे के लिए देश को भी बेच सकते हैं। ये अर्बन नक्सल आज अपनी टेक्नोलॉजी की मदद से किसी भी फेक न्यूज़ को अखबार, न्यूज़ पोर्टल के जरिये उस न्यूज़ को सही साबित कर देते हैं। ऐसे टेक्नोनक्सल को भी हमें बेनकाब करने की आवश्यकता है। आज जब इनकी रशिया, चीन वाली झूठी शतरंज की चालें अपने सही निशाने पर नहीं पड़ रहीं है तो वो अपनी इन गन्दी चालों को दूसरे के मोहरों के साथ खेल रहें है। और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दे रहें हैं।

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सुभाष चन्द्र बोस ने इस देश को आज़ाद करने के लिए एक सेना का गठन किया था। इस समय ऐसी ही देश को तोड़ने के लिए सेना का गठन इन अर्बन नक्सलियों टुकड़े टुकड़े गैंग ने किया है। तय आपको और हमें मिलकर करना है कि कौन सी आज़ादी की सेना के साथ रहना है सुभाष वाली या टुकड़े-टुकड़े गैंग वाली।

( लेखक अभाविप अवध प्रांत के प्रान्त संगठन मंत्री हैं,  ये लेखक के निजी विचार हैं)

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