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पुस्तक समीक्षा : पूर्वोत्तर की आदिवासी कहानियां

अवनीश राजपूत
पूर्वोत्तर की कहानियां अपनी उस संस्कृति, भाषा, भूगोल व उन अनुभवों को दर्ज करती हैं, जो बाकी भारत से कई मामलों में भिन्न हैं। अगर देखें तो इन कहानियों में भारी संख्या में बहिरागत घुसपैठियों के आ जाने से, अपने ही देश और घर में परदेसी और पराया होने का अहसास पाठक के मन को बराबर कचोटता है। ‘पूर्वोत्तर की आदिवासी कहानियां’ नाम से संकलित इस पुस्तक में अरुणाचल प्रदेश, असम, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर आदि क्षेत्रों के एक दर्जन से अधिक पूर्वोत्तर के लेखकों की कहानियों को संजोया गया है। इनमें आइना, सड़क की यात्रा, जंगल की आग, एक पैसा, बांझ, वापसी, बीते हुए दिन, डर, अमावस की रात, शिक्षक, संघर्ष, निराशा के उस पार, भूमिपुत्र, कठ-बाप सहित कुल सत्ताइस कहानियां हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का संकलन एवं संपादन रमणिका गुप्ता ने किया है। रमणिका गुप्ता मूलत: पंजाब की रहने वाली हैं और अबतक उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का संपादन कर चुकीं हैं। फिलहाल रमणिका गुप्ता इन दिनों पूरे तटस्थ भाव से रचनात्मक लेखन के उन्नयन में लगी हुई हैं। संकलनकर्ता की माने तो संकलन एक विशेष प्रकार की आभा लिए हुए है जो पढ़ने को प्रेरित और काफी कुछ जानने को उत्साहित करता है। मानवीय संवेदनाओं की पड़ताल करती इस संकलन की सभी कहानियां आदिवासी समाज के हर पहलू से आपको अवगत कराती हैं।
इनमें मेघालय से बियोजा सावियान की ‘कठ-बाप’ कहानी, जिस मार्मिकता से बच्चे और सौतेले पिता के वार्तालाप और उनकी गहरी संवेदना को व्यक्त करती है वैसी संवेदना शेष भारत के अन्य लेखकों की कहानियों में कम ही देखने को मिलती हैं। इसी संकलन में निराशा की इन्तहा की हदों को तोड़कर, व्यक्ति की जिजीविषा के सहारे अपनी विकलांगता से उबरते मनुष्य की कहानी ‘निराशा के उस पार’ में कहानीकार वान्नेइहल्लुंगा ने बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। वहीं त्रिपुरा की ख्वालकुंगी की कहानी ‘काउबॉय लाबेले जीन्स’ बच्चों की तरफ माता पिता का उपेक्षा भरा व्यवहार और बच्चे को अपराधियों के चंगुल में फंसने के खतरे की ओर संकेत करती है। इसके अलावा इस संकलन में सामाजिक सरोकारों को उकेरती एच. इलियास की ‘सूर्यास्त’ कहानी में शराब से बरबाद होते परिवारों की व्यथा को दर्शाने का प्रयास किया गया है। जबकि त्रिपुरा के स्नेहमय राय चौधुरी की कहानी ‘साकालजुक’ यानी स्त्री को डायन करार देने जैसी सामाजिक कुरीति पर करारा कटाक्ष है।
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