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हमारा देश, हमारा राज के उद्घोषक भगवान बिरसा मुंडा

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज़ी दमन के ख़िलाफ़ संघर्ष के ध्वज वाहक भगवान बिरसा मुंडा छोटानागपुर के क्षेत्र में अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ हुए संघर्ष ने पूरे भारतीय जनमानस को शोषणयुक्त शासन के ख़िलाफ़ एकजुट होने का अहम संदेश दिया था। वैसे तो भारत में स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे अनेक नेता हुए है जिन्होंने जनता की आवाजों को उठाया, इन सब नेताओ में एक प्रमुख नेता थे बिरसा मुंडा। उनके कार्यों के कारण उन्हें पूरे भारत एवं विश्व मे याद किया जाता है और वनवासी समाज तो आज भी  उनको  भगवान की तरह पूजते हैं।

बिरसा मुंडा का जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान में झारखंड) के उलीहातु में 15 नवंबर 1875 को एक मुंडा परिवार में हुआ था, उनके माता-पिता का नाम सुगना मुंडा और कर्मी हटु था। बिरसा के संघर्ष की शुरूवात अंग्रेजों के उस अधिनियम की ख़िलाफ़त से प्रारम्भ हुई जिसने वनवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया ‘इंडियन फारेस्ट एक्ट 1882’ पारित कर अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर वनवासियों(आदिवासियों) के वो गाँव, जहां वे सामूहिक खेती करते थे, ज़मींदारों और दलालों में बांटकर राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी ये एक शोषण को बढ़ाने का अंग्रेज़ी सरकार का षड्यंत्र था । इससे पहले मुंडाओं ने संयुक्त भूस्खलन की खुनखट्टी प्रणाली का पालन किया था। यह एक इस समतावादी व्यवस्था था इसमें सभी मुंडाओ को समान भूमि मिली हुई थी तथा भूमि कोई विक्रय की वस्तु नही थी।

बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश भारत में जमीदारों और अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन की नेतृत्व किया और 1894 में, बिरसा ने अंग्रेजों और दिकू  (बाहरी लोगों) के खिलाफ अपनी घोषणा की और इस तरह मुंडा उलुलान शुरू किया। इस शोषण के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी फूंकी बिरसा ने। अपने लोगों को गुलामी से आजादी दिलाने के लिए बिरसा ने ‘उलगुलान’ (जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी ) जगाई।

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बिरसा आन्दोलन का उद्देश्य था दिकू जमींदारों (गैर-आदिवासी जमींदार) द्वारा हथियाए गए वनवासियों की कर मुक्त भूमि की वापसी जिसके लिए वनवासी(आदिवासी) लम्बे समय से संघर्ष कर रहे थे। मुंडा समुदाय सरकार से न्याय पाने में असमर्थ रहे,इस असमर्थता से तंग आ कर उन्होंने अंग्रेजी राज को समाप्त करने और मुंडा राज की स्थापना करने का निर्णय लिया। वे सभी ब्रिटिश अधिकारीयों  को अपने क्षेत्र से बाहर निकाल देना चाहते थे,उनके नेतृत्व में मुंडाओं ने 1899-1900 ई. में विद्रोह किया।

बिरसा ने ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ यानि ‘हमारा देश, हमारा राज’ का नारा दिया। देखते-ही-देखते सभी आदिवासी, जंगल पर दावेदारी के लिए इकट्ठे हो गये,अंग्रेजी सरकार के पांव उखड़ने लगे। अंग्रेजी सरकार ने बिरसा के उलगुलान को दबाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन आदिवासियों के गुरिल्ला युद्ध के आगे उन्हें असफलता ही मिली। 1897 से 1900 के बीच आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच कई लड़ाईयां हुईं। पर हर बार अंग्रेजी सरकार ने मुंह की खाई। क्योंकि बिरसा मुंडा आदिवासियों की दयनीय हालत को देखकर उन्हें जमींदारों और ठेकेदारों के अत्याचार से मुक्ति दिलाना चाहते थे,उन्होंने अनुभव किया था कि शांतिपूर्ण तरीकों से आन्दोलन चलाने का परिणाम व्यर्थ होता है। इसलिए उन्होंने इस आन्दोलन को उग्र बनाने के लिए अधिक से अधिक नवयुवकों को संगठित किया।मुंडाओं ने उन्हें अपना भगवान् मान लिया,उनका प्रत्येक शब्द मुंडाओं के लिए मानो ब्रह्मवाक्य बन गया. बिरसा मुंडा ने घोषणा की कि कोई भी सरकार को कर नहीं दे। मुंडाओं ने उनकी बातें मानी और पालन किया.

यह 19 वीं सदी में भारत में आदिवासियों और किसानों के विभिन्न विद्रोह के बीच आदिवासी लोगों का एक बहुत महत्वपूर्ण विद्रोह है। बिरसा ने अपना धर्म भी शुरू किया और घोषित किया कि वह ईश्वर के दूत हैं। कई मुंडाओं, खारियों और ओराओं ने उन्हें अपना नेता स्वीकार किया। उन्हें 1895 में गिरफ्तार किया गया और दो साल बाद रिहा कर दिया गया। 1899 में, उन्होंने लोगों के साथ अपने सशस्त्र संघर्ष को फिर से शुरू,अंग्रेजों ने उन्हें 1900 में जामकोपई जंगल, चक्रधरपुर से पकड़ा। बिरसा मुंडा का निधन 9 जून 1900 को हुआ था, उनकी मृत्यु रांची जेल में 25 साल की छोटी सी उम्र में हो गया। अधिकारियों ने दावा किया कि हैजा से उनकी मृत्यु हो गई, हालांकि इस पर संदेह है। मुंडा के संघर्षों का ही परिणाम था कि 1908 में “छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम” आया जिसके तहत आदिवासियों की गैर आदिवासियों को जमीन देने पर पाबंदी की गई।

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बाद में 15 नवंबर 2000 को बिरसा मुंडा की जयंती पर ही झारखंड राज्य का निर्माण हुआ था। उनका चित्र भारतीय संसद में लगा हुआ है वह पहले ऐसे आदिवासी नेता है जिनका भारतीय संसद में प्रतिबिंब लगाया गया। आज भी आदिवासी लोगों द्वारा संपूर्ण भारत में मनाई जाती है। आज, उनके नाम पर कई संगठन, निकाय और संरचनाएं हैं, विशेष रूप से बिरसा मुंडा एयरपोर्ट रांची, बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सिंदरी, बिरसा मुंडा वनवासी छात्रावास, कानपुर, सिद्धो कान्हो बिरसा विश्वविद्यालय, पुरुलिया और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इत्यादि शामिल है।

हाल ही मे केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से रांची स्थित भगवान बिरसा मुंडा जेल को म्यूजियम में परिवर्तित किया है।  भगवान बिरसा मुंडा की ऊंची प्रतिमा बनेगी. इसका उद्देश्य युवाओं और बच्चों की प्रेरणा के लिए जगह-जगह उनकी कृतियों का वर्णन किया जाएगा. इस संग्रहालय के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने 25 करोड़ और राज्य सरकार 1.75 करोड़ दिए है।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं एवं ये उनके निजी विचार हैं।)

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