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सामाजिक समरसता और अभाविप

सदाशिव गौतम देवधर

पिछले सात दशक से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) शिक्षा के क्षेत्र के जरिए देश के पुर्ननिर्माण का काम कर रहा है। अभाविप की कुछ मूल मान्यताएं है, जिनमें शैक्षिक परिवार की संकलपना पर विश्वास, विधार्थी आज का नागरिक है और उसे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम करना होता है। लिहाजा सामाजिक न्याय, समतायुक्त और शोषण मुक्त समाज के लिए छात्र शक्ति को काम करना चाहिए और ये काम उसे दलगत राजनीति से दूर रहते हुए रचनात्मक तरीके से करना चाहिए। यह कलपना परिषद की मूल धारणाओं में से ही कुछ हैं।

एक बड़ा संगठन खड़ा करने के लिए बड़े प्रयास करने पड़ते हैं, या यूं कहें कि इसका एक विकासक्रम होता है गलत नहीं होगा, इसी तरह परिषद की अखिल भारतीय संरचना खड़ा करने में कुछ वर्ष लगे। इकाई,जिला, विश्वविद्यालय, प्रदेश और स्तरों को खड़ा करने में कई वर्ष लगे। इस कालखंड में इसको करने के लिए अलग अलग प्रयोग भी हुए। इससे विभिन्न स्तरों पर सामाजिक सहभाग की स्पष्टता भी बढ़ती चली गई। सामाजिक समस्याओं को हल करना और इनको हल करने लिए छात्रों को उत्साहित करना उन्हें दिशा देना एक बड़ा काम था। इसके लिए कार्यक्रम करना, प्रकल्पो की रचना करना आदि आदि का काम तेजी से होने लगा और कुछ समय के बाद इसके नतीजे भी दिखने लगे।

स्वतंत्रता से पहले से ही समाज के समान करने की कोशिशें चल रही थी। प्रार्थना समाज, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज, श्रद्धेय नारायण गुरू, पू. शंकरदेव, महात्मा फूले, बाबा साहब अंबेडकर, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, राजा राम मोहन राय आदि लंबे समय से समाज में सुधार के प्रयास कर रहे थे। कुछ को सफलता भी मिली। लेकिन समाज में ऊंच-नीच, जातिगत संघर्ष, मंदिर प्रवेश और पीने के पानी के मुद्दे ज्वलंत रहे। वनवासियों का भंयकर शोषण चल रहा था। इसलिए अमानवीय, समाज विघतक प्रथाएं और परंपराएं हम उखाड़कर फेंकने की कोशिश कर रहे हैं और करते रहेंगे। साथ ही समाज के लिए उपयुक्त प्रथाएं, परंपराएं, मूल्य और आस्थाएं कामय रहें। इसके लिए भी प्रयास करते हैं और करते रहेंगे। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता इस भावना से ओत प्रोत हैं और इस ओर प्रयास कर रहे हैं।  मानसिता का निर्माण करना हमारा प्रमुख ध्येय है और इसके लिए हम लगातार प्रयास करते आएं हैं। इसी को ध्यान में रखकर हम इकाई या प्रदेश अभ्यास वर्ग, चर्चा या स्वाध्याय मंडल, कार्यकारी परिषद, अधिवेशनों में, भाषण, व्याख्यान, विचार गोष्ठी, परिचर्चा आदि का काम चलता रहता है। इसके साथ साथ प्रत्यक्ष कार्यक्रमों की भी जरूरत रहती है। इसलिए हम उपक्षित बस्तियों में सर्वे, संस्कार केंद्र, चिकित्सा केंद्र, वनवासी कार्यक्रम आदि चलाते हैं ताकि कार्यकर्ताओं का जुड़ाव सामजिक संवेदनाओं से जा रहे।

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आज महिलाओं को भी अपनी भूमिका को दोबारा से देखना होगा। इनकी ओर अब देवी या दासी का भाव से देखा जाता है। पश्चिम की संस्कृति और दूरदर्शन की अपसंस्कृति के कारण इन्हें अब भोग की वस्तु के रूप में देखा जाता है। इन विपरित परिस्थियों के बावजूद जो मानवता दिखाई दे रही रही है उसका एक प्रमुख कारण महिला अस्तित्व है। समाज के इस आधे हिस्से का सहभाग सामाजिक पुनर्निर्माण में न के बराबर हैं। लेकिन इसके भूमिका को बढ़ाने की जरूरत है। समाज के जीवन में हर स्तर पर बढ़ाना होगा। निर्णयों में भी घर परिवार में भी इनका सहभाग बढ़े इसके प्रयास करने पडेंगे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पहले से ही छात्रा की भूमिका छात्र जैसी ही मानी है। वह सभी प्रकार के भार संभालती है। अध्यक्ष, मंत्री और संगठन मंत्री भी बनती है। परिषद के कार्याकर्ताओं कोशिश करते हैं कि दहेज, खर्चीली शादियां, संपत्ति का भद्दा प्रदर्शन आदि से दूर रहें। धीरे-धीरे अंतरजातिय और अंतर प्रांतीय विवाह शुरू हुए हैं। परिषद के कार्यकर्ता महिला समस्या, अपसंस्कृति का आक्रमण, नारी शोषण और अश्लीलता आदि के मुद्दों पर भी काम करते रहे हैं और इसको लेकर कई प्रांतों में आंदोलन भी हुऐ हैं।

परिषद के कार्यकर्ता स्वयं के संतान होने के बावजूद अनाथ बच्चों को गोद ले रहे हैं। उन्हें पाल पोस भी रहे हैं। ताकि समाज में बराबरी का अधिकार सभी को मिल सकें। इस बात से विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं की दृष्टिकोण का पता चलता है। इसी तरह अभाविप ने उत्तर पूर्वी राज्यों के छात्रों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL) जैसा कार्यक्रम चला रहा है। तो मेरा भारत मेरा देश जैसे कार्यक्रम भी देशभक्ति की भावना जगाने का काम विद्यार्थी परिषद कर रही है।

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आज वनवासी अंचल और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला उपेक्षित है। वे सुख-सुविधाओं से वंचित है और उनका भारी शोषण हो रहा है। उनको हेय दृष्टि से देखा जाता है। अगर भारतीय संस्कृति को सही से समझना है तो इन्हीं क्षेत्रों मे ये देखी जा सकेगी। भारतीय अस्मिता की सही पहचाने इन्हीं क्षेत्रों में हो पाती है। परिषद के कार्यकर्ता इनकी प्रगति के लिए कुछ छोटे छोटे उपक्रम और परस्पर बंधुभाव और एकत्व भाव जगाने का प्रयास कर रहे हैं।

आज की चुनाव प्रणाली और राजनीति की वजह से ये समस्या और बढ़ रही है क्योंकि वोट बैंक की राजनीति ने इसको सुलझाने की बजाए उलझा दिया है। राजनीति सिर्फ सत्ता पाने के लिए की जा रही है। समाज को ऊपर उठाने के लिए नहीं। किसी भी लोकतंत्र की सफलता समाज के सभी वर्गों के जीवन की समान सहभाग से मापी जा सकती है। सारे समाज को न्याय युक्त और शोषण मुक्त बनाने की आवश्यता है। ये काम कठिन तो है। लेकिन संस्कारित छात्रशक्ति इस तरफ प्रयासरत हो गई है। सामाजिक परिवर्ततन के कितने भी काम किए जाएं, लगता है कि कम ही है। विद्यार्थी परिषद भी के प्रयास भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अपर्याप्त ही लगते हैं।

स्वतंत्रता के बाद देश में आरक्षण के विरोध में अनेक आंदोलन हुए लेकिन परिषद ने आरक्षण का पक्ष लिया, मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए परिषद ने 1981 में पटना में आरक्षण पर एक बड़ा सेमीनार कराया था, इसमें समाज के सभी वर्गो के चिंतक, साहित्यकार, पत्रकार, राजनेता और छात्र शामिल हुए थे और सभी ने सर्वसम्मति से आरक्षण के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था।

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मराठवाड़ा में विश्वविद्यालय के नाम का परिवर्तन की बात चल रही है। पक्ष और विरोध में छात्र और समाज बंट रहा है। परिवर्तन के विरोध में तीव्र आंदोलन हुआ। विद्यार्थी परिषद ने परिवर्तन के पक्ष में 1978 से 1993 तक लगातार आंदोलन किया। प्रदेश अधिवेशन में प्रस्ताव पारित करना, 1986 में वीर सावरकर जी के जन्म शताब्दी के निमित्त पूरे प्रदेश में समता ज्योति यात्रा करना। 1990 में नाम परिवर्तन तथा सामाजिक समता का विषय लेकर पूरे मराठवाडा में 115 गांवों संवाद स्थापित करना। 1993 में मुंबई में महाराष्ट्र प्रदेश में की कुछ शैक्षिक मांगों को लेकर विराट छात्र प्रदर्शन किया। इसमें करीब एक लाख चौंतीस हजार छात्रों ने भाग लिया था। सामाजिक परिवर्तन के प्रयास कितने भी किए जाएं हर बार महसूस होता है कि और ज्य़ादा करने चाहिएं। इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए विद्यार्थी परिषद के द्वारा किए जा रहे प्रयास भी अपर्याप्त ही लगते हैं। हम अपने प्रयासों की गति को और बढ़ाना पड़ेगा। समाज के प्रति मेरे और अपने जैसा अपनत्व भाव को जगाना और बढ़ाना बहुत जरूरी है। यही समस्या का वास्तविक समाधान है।

(लेखक रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं पूर्व में आप अभाविप के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री रहे हैं।)

 

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