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…जब अटल जी ने कहा था ऐतिहासिक भूमिका पूरी कर रही है अभाविप

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के स्वर्ण जयंती उद्घाटन समारोह( 9 जुलाई 1998) पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ऐतिहासिक भाषण

स्वर्ण जयंती उदघाटन समारोह, उदघाटन भाषण – श्री अटल बिहारी वाजपेयी,  प्रधानमंत्री, भारत सरकार

9 जुलाई 1998, मावलंकर सभागार, नई दिल्ली।

आदरणीय प्रा. यशपाल जी, राज्यसभा में नवनिर्वाचित सदस्य के रूप में आज से सक्रिय हो गये मेरे सहयोगी डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी जी, आप्टे जी, पाण्डेय जी, गोस्वामी जी देवियो और सज्जनों, मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर आपके बीच उपस्थित हो सका।विद्यार्थी परिषद से मेरा नाता उसके जन्म काल से है।किसी छात्र संगठन के लिए 50 साल अबाध गति से प्रगति करते जाना, अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार करते जाना, नई नई योजनाएं हाथ में लेना, चिंतन में और व्यवहार के क्षेत्र में परिवर्तन लाने का प्रयास करना अपने में एक बड़ी उपलब्धि है।मैं इसके लिए विद्यार्थी परिषद का अभिनंदन करना चाहता हूं।मुझे याद है जब उत्तर-पूर्व समस्याओं की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था, अब तो पूरा ध्यान देने का प्रयास हो रहा है उसमें विद्यार्थी परिषद एकमात्र ऐसा संगठन था जिसने अंतर्राज्यीय सहजीवन का एक प्रयोग प्रारंभ किया।वहां के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें, अच्छे वातावरण में विकसित हो सकें, इस दृष्टि से यह प्रयास प्रशंसनीय था।उत्तर पूर्व के एक मुख्यमंत्री तो विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़े रहे हैं और उन्हें अभी भी इस बात का गर्व है कि वह विद्यार्थी परिषद से संबंधित थे।विद्यार्थी परिषद एक राष्ट्रव्यापी संगठन है , राष्ट्रवादी संगठन है , विद्यार्थियों की समस्याओं को टुकड़ों में नहीं उनकी समग्रताओं में देखता है।और इसलिए विद्यार्थियों के साथ शिक्षक भी आते हैं, अभिभावक भी आते हैं , पालक भी आते हैं। विद्यार्थी सबसे कटकर बंटकर समाज में न तो पूरी तरह योगदान दे सकता है और न स्वयं अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सकता है।विद्यार्थी नौजवान होते हैं, नागरिक होते हैं, मतदाता होते हैं और अपने मताधिकार का प्रयोग भी करते हैं।लेकिन परिषद एक ऐसा संगठन है जो दलीय राजनीति से पृथक रहा है।अनेक दलों के मन में क्या भावना उठती है, उठनी स्वाभाविक है किय यह छात्र संगठन हमारे साथ संबंध क्यों नहीं हो जाता ? लेकिन परिषद ने जो निर्णय किया है वह सही निर्णय है। राजनीति भी जीवन का एक हिस्सा है लेकिन जीवन के और हिस्सों की उपेक्षा करके अगर राजनीति सब पर हावी होना चाहती है, खासकर वह राजनीति जो आदर्शों से जुड़ी हुई नहीं है , तो यह राष्ट्र के लिए कल्याणकारी नहीं होगा।विद्यार्थी परिषद ने लोकतंत्र के लड़ाई लड़ी, देश की एकता और अखंडता के लिए संघर्ष किया, विद्यार्थियों ने बलिदान दिए, हिंसा के आघात को सहा, लेकिन  विद्यार्थी परिषद अपने पथ से विचलित नहीं हुई।इसका श्रेय विद्यार्थी परिषद को दिया जाना चाहिए|

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन अपेक्षित है।प्राध्यापक यशपाल जी ने जो कुछ कहा वह सब के लिए विचारणीय विषय है।शिक्षा को भी हमने टुकड़ों में बांट दिया जबकि उसे उसकी समग्रता में देखा जाना चाहिए।जो प्रश्न उठते हैं उनका मूलगामी हल खोजने का प्रयास होना चाहिए।प्रो. साहब ने कहा कि कॉलेज और विश्वविद्यालय तक पहुंचने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम है कारण यह है कि हमने नींव को मजबूत करने की कोशिश नहीं की इतनी बड़ी संख्या मैं लोगों का शिक्षा के अधिकार से और शिक्षा के अवसर से वंचित होना, यह सचमुच में राष्ट्र निर्माण की सही दिशा की ओर संकेत नहीं करता।प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करने की बात थी, हो नहीं सकी है।प्रयास जारी है।लेकिन उसके साथ और भी शिक्षा के क्षेत्र में छात्र-छात्राएं आगे बढ़े, इसकी आवश्यकता है |

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आज हम नई सदी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।कभी-कभी यह लगता है कि यह संक्रमण काल बहुत लंबा हो गया है। लेकिन ऐसा सोचने का कारण नहीं है। जिस देश में गणना मन्वंतरों में होती है वहां 10 साल महत्वपूर्ण होते हुए भी ऐसे कालखंड का प्रतिनिधित्व नहीं करते कि उस से निराश होकर हम, हताश होकर वर्तमान के प्रयासों को और भविष्य की योजनाओं को अपनी दृष्टि से ओझल हो जाने दे |

विद्यार्थी परिषद कुछ मूल्यों के साथ प्रतिबद्ध है।परिवर्तन की लहर में कभी-कभी यह आशंका होती है जो कुछ शुभ है, श्रेष्ठ है, सत्य है, शिव है, कहीं वह तिरोहित ना हो जाए। लेकिन इस तरह का डर मन में पालना नहीं चाहिए।इस प्राचीन देश में इसकी संस्कृति ने हजारों वर्ष हर तरह के दौरे देखे हैं।यह देश आगे बढ़ेगा, देश की अस्मिता जागेगी और उसके आधार पर हम शक्तिशाली, सुदृढ़, समृद्धिशाली और स्वावलंबी भारत का निर्माण करने में समर्थ होंगे।इसके बारे में किसी के मन में संदेह नहीं होना चाहिए।संकटों में चुनौतियां होती है।चुनौतियाँ हमारी परीक्षा लेती हैं।हम किस धातु से बने हैं, इसको कसा जाता है।हम अपने लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं यह भी देखा जाता है और इसलिए संकटों से भागने का सवाल नहीं है।भागकर कहां जाएंगे? अगर हम संकटों से भागेंगे तो संकट हमारे पीछे भागेंगे।जो भी परिस्थिति  है उसका सफलतापूर्वक सामना करना होता है।राजनीति के क्षेत्र में मानदंड बिगड़े हैं।वोट की राजनीति ने सारे वातावरण को दूषित कर दिया है।लेकिन उस वातावरण को शुद्ध करना होगा।कुछ समय के बाद लोगों की समझ में विशेष को नौजवानों की समझ में ,विशेषकर नौजवानों की समझ में यह बात आएगी कि परिवर्तन को अगर स्थाई बनाना है कल्याणकारी बनाना है तो फिर संकीर्ण और छुद्र राजनीति का परित्याग करना पड़ेगा |

अंतश्चेतना जाग रही है।इसको और बलशाली बनाने की जरूरत है।छात्र जीवन हमें अवसर देता है।यह चुनौती भी है, अवसर भी है।चुनौती को हम स्वीकार करें , अवसर का लाभ उठाएं।विद्यार्थी परिषद की भूमिका बड़ी रचनात्मक भूमिका रही है।मुझे विश्वास है आने वाले 50 सालों की योजना बनाकर यह विविध कार्यक्रमों को जिनको उन्होंने हाथ में लिया है, उनको सफल बनाएंगे और नए कार्यक्रमों की भी सृष्टि करेंगे।बड़ी मात्रा में मानवीय संसाधनों का उपयोग नहीं हो रहा है।जंगल हमारी पूंजी है।उसको थोड़ा सा सिखाना, थोड़ा सा समझाना और उससे सीखते जाना परिवर्तन की गति को तेज कर सकता है।विद्यार्थी परिषद इस महनीय कार्य में लगी हुई है।मैं विद्यार्थी परिषद को इस अवसर पर बधाई देना चाहता हूं।उसके नेतृत्व का, उसके कार्यकर्ताओं का, इसमें भाई-बहन सब शामिल है।मैं प्रशंसा उनकी करना चाहता हूं क्योंकि मुझे लगता है विद्यार्थी परिषद के रूप में एक ऐसी शक्ति खड़ी हो रही है और खड़ी हो गई है,  विद्यार्थी राष्ट्रवादी संगठन है, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध संगठन है , सिद्धांतों पर दृढ़ रहने वाला संगठन है।आरक्षण के सवाल को लेकर काफी उथल-पुथल मची हुई थी तो विद्यार्थी परिषद ने आरक्षण का समर्थन करके बाकी के समाज के सामने एक नई दृष्टि दी थी, बाकी के समाज को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।हमें समता भी चाहिए, समरसता भी चाहिए।समता कानून दे सकता है , कानून सबको बराबर घोषित कर सकता है, मगर सबको बराबर समझने का चिंतन , सबको बराबर समझकर उनके साथ समान व्यवहार करने का यह दृष्टिकोण कहां से आएगा ? हर बात के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया नहीं जा सकता । दरवाजा अगर खटखटाना है  एक-एक नागरिक का , एक-एक परिवार का दरवाजा खटखटाना होगा।सचमुच में कपाट को खोलने की आवश्यकता है।और यह  कार्य डा. लक्ष्मीमल सिंघवी ने कहा, बिना संवेदना के नहीं हो सकता |

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समाज एक जीवमान  इकाई है।सुख में , दुख में उसके साथ खड़े रहकर, उसका सहयोग लेकर अगर परिवर्तन किया जाएगा तो वह परिवर्तन स्थाई होगा और वह परिवर्तन कल्याणकारी होगा।एक दृष्टि से विद्यार्थी परिषद एक ऐतिहासिक भूमिका पूरी कर रही है। मैं चाहता हूं और छात्र संगठनों को भी इस तरह का समग्रता का दृष्टिकोण लेकर चलना चाहिए।इस तरह देश की समस्याओं के साथ अपने आप को जोड़ें।प्रतिस्पर्धा तो चलेगी राजनीति के कारण प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी।लेकिन कैसी भी प्रतिस्पर्धा हो, भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा करने का काम अगर नौजवान अपने हाथ उठाते हैं और उसके अनुसार जगह-जगह आशा के, विश्वास के दीपक जलाते आ जाते हैं तो कोई कारण नहीं है ना कि जो संकट गिरता हुआ दिखाई देता है उसमें रोशनी की किरण फैले |

यह रोशनी की किरण फैलेगी| इसके लिए नौजवान आगे बढ़ेंगे। निस्वार्थ सेवा,  पारदर्शी प्रमाणिकता, राष्ट्र के बारे में चिंतन , इन्हें लेकर विद्यार्थी परिषद सफलता के 50 साल बिताएं हैं।मुझे विश्वास है देश में जो स्थिति पैदा हो रही है वह परिस्थिति हम सबको एक नए ढंग से कर्तव्य पालन करने में प्रबुद्ध होने के लिए प्रेरित करेगी।सीमा पर खड़ा हुआ जवान अपना दायित्व निभा रहा है।किसान ने अनाज की दृष्टि से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।हमारे यहां ऐसे उद्योग चल रहे हैं जो विश्व के उद्योगों की टक्कर में टक्कर ले सकते हैं , उससे भी आगे बढ़ गए हैं , लेकिन इन सब उपलब्धियों की बात पीछे तक जाती है और देश में हताशा और निराशा का भाव पैदा करने का प्रयास हो रहा है |आज  सारे संसार की नजर भारत की और लगी है।पोखरण द्वित्य ने सारी दुनिया को हिला दिया है लेकिन दुनिया हिल जाए और हम अपनी जगह पर डटे रहें , जड़ हो जाएँ , गतिमयता छोड़ दें , तेजस्विता का परित्याग कर दें।यह तो उस भावना के साथ मेल नहीं खाता, जिस भावना का हमारे शास्त्रज्ञ ने टेक्नीशियंस ने, इंजीनियर ने परिचय दिया है।हम चाहते थे क्योंकर अनुशक्ति के मामले में देश पिछड़ा क्यों रहे ? दुनिया में अनेक देशों में अनु-शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है ,शांतिपूर्ण काम के लिए।जहां तक रक्षा का सवाल है उसको अलग किया जा सकता है और अनु शक्ति विकास के काम में लगे , इस तरह का प्रबंध किया जा सकता है।लेकिन इसके लिए कुछ देशों की जो एकाधिकार वाली प्रवित्ति है, मोनोपोली वाली प्रवृत्ति है,उस से जूझना पड़ेगा और जूझने में कुछ कठिनाइयाँ आएंगी , आ रही है।हम पर प्रतिबंध लगाने की बातें हो रही है ,हमने जो कुछ किया सोच समझ कर किया और हम नए प्रतिबंधों की चुनौतियां भी शिकार करने के लिए तैयार हैं।आवश्यकता इस बात की है सब मिलकर चिंतन करें,  सोचें ,मिलकर चलें।छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठकर सारे राष्ट्र का सारे विश्व का विचार करें।हम तो ऐसा विश्व चाहते हैं जिसमे एटॉमिक हथियारों की ज़रूरत ही ना हो।क्या ऐसा विश्व बनाने की ओर कोई ठोस कदम उठाए गए हैं? जबानी जमा खर्च ज्यादा हुए हैं, ठोस काम नहीं हुए हैं।मगर चिंतन की इस प्रक्रिया को भी हमने झकझोरा है और हम आशा करते हैं कि विश्व के बड़े राष्ट्र अपने सोचने की दिशा में परिवर्तन करेंगे।जहां तक हमारा सवाल है भारत की नई पीढ़ी मेरे सामने बैठी है ,यह नई पीढ़ी सभी संकटों का सामना करने के लिए तैयार है।राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाकर, स्वालंबन की भावना को बढाकर हम न केवल वर्तमान चुनौती का सामना कर सकते हैं, अपितु आने वाले सवालों का भी हल ढूंढ सकते हैं।मुझे आपने आमंत्रित किया , उद्घाटन करने का अवसर दिया , मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।

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नोट – भारत रत्न  पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल  बिहारी वाजपेयी जी का यह भाषण राष्ट्रीय छात्रशक्ति सितंबर 2018 अंक में प्रकाशित  किया जा चुका है।  आज अटल जी  की पुण्य तिथि पर  अभाविप के स्वर्ण जयंती उद्घाटन समारोह पर अटल जी के द्वारा दिए गए उसी भाषण को शब्दशः यहां पर प्रकाशित किया गया है।

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