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जालियांवाला बाग नरसंहार की अनकही दास्तां

जलियांवाला बाग नरसंहार  शताब्दी वर्ष पर

शहीदों को सत सत वंदन
“जलियांवाला बाग ये देखो
यहां चली थी गोलियां ,
यह मत पूछो किसने खेली
यहां खून की होलियां ।
एक तरफ बंदूके दन दन
एक तरफ की टोलियां,
मरने वाले बोल रहे थे
इंकलाब की बोलियां ।
बहनों ने भी यहाँ लगा दी
बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से तिलक करो
यह धरती है बलिदान की ।

भारत में प्रथम स्वतंत्रता समर की असफलता के बाद अंग्रेजों का दमन चक्र और भी तेज हो गया । 1857 की महान क्रांति के पश्चात भारत के इतिहास में अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड पहली भयंकरतम ,क्रूर, वीभत्स, विस्फोटक तथा उत्तेजना पूर्व घटना थी । जिसने न केवल भारत के जनमानस को उद्वेलित ,कुपित,आंदोलित किया अपितु ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी तथा तत्कालीन भारत सरकार की सांसें फुला दी तथा ब्रिटिश संसद सदस्यों की परस्पर विरोधी प्रतिक्रिया करने को बाधित किया ।
यह भयानक घटना ब्रिटिश शासन द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध (1914 से 1918) के दौरान किए गए बड़े बड़े झूठे आश्वासनों द्वारा की गई घोषणाओं के खिलाफ एक खुला आव्हान एवं गंभीर चुनौती थी । प्रथम विश्वयुद्ध में पंजाब ने तन मन और धन से अंग्रेजों का साथ दिया था । अतः विश्वयुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों द्वारा मांटेग्यू चेम्सफोर्ड कमीशन की रिपोर्ट लागू की गई । इसका पूरे भारत में विरोध हुआ इसके साथ ही एक और दमनकारी कानून रौलट एक्ट भी लाया गया । एक तरफ आश्वासन पूरे न होने , खराब मानसून, नए नए कर लगाने और बड़ी संख्या में पंजाब में सेना भर्ती का दबाब ,दूसरी तरफ रोलेट एक्ट जैसे दमनकारी कानून का रोष पंजाब में सबसे अधिक था । 18 मार्च 1919 को रोलट एक्ट भारतीयों के प्रबल विरोध के बावजूद पारित हो गया ।
रोलट एक्ट का चारों तरफ विरोध हुआ और इसे काला कानून कहा गया । क्योंकि इसके अंतर्गत गिरफ्तारी के लिए न कोई वकील न कोई दलील न कोई अपील की गुंजाइश थी । गांधी जी ने भी सरकार को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई , उन्हें सत्याग्रह का रास्ता ही ठीक लगा । गांधी जी ने 30 मार्च को हड़ताल का आह्वान किया किंतु सभी स्थानों पर संदेश समय पर न पहुंचने के कारण पुनः 6 अप्रैल को हड़ताल का आह्वान किया गया । पंजाब में भी सभी स्थानों पर हड़ताल रही राजनीतिक महत्व के दो प्रमुख नगरों अमृतसर तथा लाहौर पूरा बंद रहा ।अमृतसर के दो बड़े नेताओं डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सतपाल ने महात्मा गांधी को पंजाब में आने का निमंत्रण दियान।
वस्तुतः पंजाब गांधीजी की हड़ताल योजना में सबसे आगे था । अमृतसर में तो 30 मार्च को भी हड़ताल रही थी । अमृतसर में तो इससे पूर्व में 29 फरवरी 23 मार्च , 29 मार्च को भी रौलट एक्ट के विरोध में वंदे मातरम हाल में सभाओं का आयोजन किया गया जिसे बाबू कन्हैयालाल ,बरूमल इस्लाम खान, पंडित कोटुमल, लाला दुनीचंद ,पंडित राम भज दत्त आदि वक्ताओ ने संबोधित किया । 30 मार्च को एक बड़ी सार्वजनिक सभा जलियांवाला बाग में हुई जिसकी अध्यक्षता डॉ सैफुद्दीन किचलू ने की तथा पंडित कोटुमल, स्वामी अनुभवानंद तथा दीनानाथ ने भी सभा को संबोधित किया । इसी भांति पंजाब के अन्य जिलों में भी 30 मार्च को सभाएं हुई । बहुत से स्थानों पर व्रत रखे गए। लाहौर के कालेजों के छात्रावासों में भोजन नहीं बना । 6 अप्रैल की हड़ताल इससे भी बड़ी थी । जनमानस में रोष बढ़ता जा रहा था ।

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8 अप्रैल को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर इर्विंग ने कमिश्नर एच.जे.डब्ल्यू .को पत्र लिखकर कि स्थिति को खतरनाक बताया और सैनिकों की संख्या बढ़ाने की मांग की । 9 अप्रैल को रामनवमी का त्यौहार हिंदू मुस्लिम एकता का प्रदर्शन करते हुए उत्साह पूर्वक मनाया गया । डॉक्टर हासिफ मोहम्मद बशीर रामनवमी शोभायात्रा का नेतृत्व कर रहे थे । इस हिंदू मुस्लिम एकता को अंग्रेज सरकार और भी भयभीत हो गई । इससे पहले ही ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी के पंजाब आने पर रोक लगा दी थी उन्हें पलवल रेलवे स्टेशन गिरफ्तार कर वापस मुंबई भेज दिया गया था । इससे लोगों में असंतोष और भी बढ़ गया । अमृतसर में स्थानीय कारणों से रोष और उत्तेजना अधिक थी ।

डिप्टी कमिश्नर इर्विंग से पहले ही पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने दमनकारी नीति अपनाई । इसी के आदेश पर डिप्टी कमिश्नर ने 10 अप्रैल को डॉक्टर सतपाल डॉक्टर किचलू को अपने कार्यालय बुलाया और गिरफ्तार कर ब्रिटिश दस्ते के साथ डलहौजी भेज दिया । डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर किचलू की गिरफ्तारी ने आग में घी का काम किया । दोनों नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार नगर में फैलते ही जनता में रोष की लहर व्याप्त हो गई । लोग डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर जाने के लिए इकट्ठा होने लगे । भीड़ का नेतृत्व महाशय रत्नचंद और चौधरी बुग्गामल कर रहे थे । भीड़ को हालगेट के ब्रिज के पास रोक दिया गया और रास्ते रोकने के लिए सैनिक टुकड़ी खड़ी कर दी गई । सरकारी मजिस्ट्रेट ने भीड़ को गैरकानूनी बताया और गोली चलाने का आदेश दिया । उस गोलीबारी में 20 से 30 लोग मारे गए । ब्रिटिश भीड़ के दूसरी दिशा में वापस लौटने पर शहर में हिंसात्मक घटना हुई । भीड़ में अराजक तत्व भी शामिल हो गए कई स्थानों पर लूटपाट आगजनी हुई । टेलीग्राफ की तारें काट दी गई । तरनतारन में भगतांवाला तथा छहरटा स्टेशन नष्ट कर दिए गए ।

10 अप्रैल को ब्रिगेडियर जनरल आर.एच. डायर को जालंधर तार भेजकर सेना को बंदूकों और हवाई जहाज से लैस होने को कहा गया । कुछ देर बाद उसे दो तार और मिले एक अमृतसर से दूसरा लाहौर से पहले तार में उसे 200 सैनिक अमृतसर भेजने को कहा गया स्थिति को भांपते हुए उसमें 200 की बजाय 300 सैनिक स्पेशल ट्रेन से अमृतसर भेजें ,जो 11 अप्रैल को प्रातः 5:00 बजे वहां पहुंच गए । जनरल डायर को 11 अप्रैल को 2:00 बजे पुनः तार मिला जिसने उसे अमृतसर जाने का आदेश था तथा सिविल शासन को नियंत्रित करने और जो भी उचित लगे हुए कार्रवाई करने का आदेश दिया गया । वह 11 अप्रैल रात 9:00 बजे अमृतसर पहुंच गया ।

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12 अप्रैल को उसने 125 ब्रिटिश और 300 भारतीय सैनिकों के साथ नगर का निरीक्षण किया । हवाई जहाज द्वारा भी नगर का निरीक्षण किया गया पायलट की रिपोर्ट के अनुसार नगर शांत था । चौधरी बुग्गामल और दीनानाथ सहित 12 गिरफ्तारियां हुई । डायर को यह भी पता चला कि गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग करने के लिए एक मीटिंग हिंदू सभा हाईस्कूल में होनी है । जनरल डायर ने एक निषेधाज्ञा जारी की कि यदि किसी सरकारी संपत्ति को हानि हुई तो अपराधी को कड़ी सजा दी जाएगी । उसी समय नगर में यह घोषणा की जा रही थी कि अगले दिन जलियांवाला बाग में दोपहर 4:30 बजे एक सभा होनी थी ।
13 अप्रैल को जनरल डायर ने घोषणा के द्वारा सभी बैठको जुलूस और सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी को रात 8:00 बजे के बाद अपने घरों में रहने का आदेश दिया । डायर के अनुसार उसने घोषणा 12 स्थानों पर करवाई की हालांकि उसने यह भी माना कि कई महत्वपूर्ण स्थानों पर घोषणा नहीं की गई । उसी समय एक युवक गोरी दत्ता और एक बालू नाम का आदमी केरोसिन के डब्बे को पीट-पीटकर घोषणा कर रहे थे कि जलियांवाला बाग में आज शाम एक सभा होगी जिसकी अध्यक्षता अमृतसर के जाने-माने प्रतिष्ठित व्यक्ति कन्हैयालाल करेंगे ।

जनरल डायर को जब यह सूचना मिली कि उसके आदेशों की अवहेलना करके सभा बुलाई गई है तो उसने कठोर कदम उठाने का निश्चय कर लिया । वह 50 बंदूकधारी सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा । यद्यपि यह कोई बाग नहीं था मकानों से गिरा उसके पीछे के हिस्से में खाली मैदान था इसमें लोग आकर बैठ जाते थे । कोई सभा भी होती रहती थी । उसमें प्रवेश का एक छोटा सा 7.5 फुट का दरवाजा था । उसके आने से पहले 7 वक्ता बोल चुके थे । दुर्गादास बोलने वाले थे । जनरल डायर के वहां पहुंचते ही शोर मच गया उसने बिना चेतावनी दिए हुए गोलियां चलाने का आदेश दिया । वैसे तो भीड़ पर गोली चलाने से पहले चेतावनी भी दी जाती है और फिर आकाश में गोलियां चलाई जाती है फिर खाली जमीन पर , लेकिन वहाँ जब सिपाहियों ने कुछ गोलियां पहले ऊपर चलाई तब उसने सीधे भीड़ के ऊपर गोली चलाने का आदेश दिया । 10 मिनट तक गोलियां चली , जब खत्म ना हो गई । जानकारी के अनुसार 3.3 की 1650 गोलियाँ चलाई गई । मिनटों में हाहाकार मच गया और लाशों के अंबार लग गए । जिधर भी लोग जान बचाने के लिए भागे उसने उसी तरफ़ गोलिया चलवाई । उसका उद्देश्य सभा को खदेड़ना नहीं था वह तो सबक सिखाना चाहता था कि ताकि लोग ब्रिटिश शासन से डर कर रहे कोई आदेश की अवहेलना न कर सके । जलियांवाला बाग में एक कुआं था । कुछ लोग जान बचाने के लिए उस कुएं में कूद गए उसके देखा देखी और भी लोग कूदने लगे और दबकर मर गए बाद में 120 लास तो कुएं में से निकाली गई ।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 लोग मारे गए । पंडित मदन मोहन मालवीय जी के अनुसार मृतकों की संख्या एक हजार के लगभग थी । स्वामी श्रद्धानंद जी ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर मृतकों की संख्या 1500 के लगभग बताई । लाला गिरधारी लाल जो घटना के बाद बाग में गए उन्होंने मैदान में पड़े हुए शवों से एक हजार के करीब मृतकों का अनुमान लगाया । सरकार ने मृतकों और घायलों के लिए कुछ नहीं किया । लोग मृतकों के शवों और घायलों के उपचार के लिए भटकते रहे । इस नृशंस और क्रूर हत्या कांड के बाद पंजाब में स्थान स्थान पर मार्शल लॉ लगा दिया गया । 2 कमिशनों की रिपोर्ट के आधार पर 218 व्यक्ति अपराधी घोषित किए गए , जिनमें से 51 को मौत की सजा तथा अन्य को भिन्न-भिन्न सजा सुनाई गई । जिस गली में मिस शेरहुड के साथ झगड़ा हुआ था उस गली में से क्षेत्र लोगों को पेट के बल चलना पड़ता था । यातनाएं देने के लिए बेंत से मारना , थप्पड़ मारना , गाली देना, दाढ़ी मूछ नोचना आदि अनेक अमानवीय घृणास्पद तरीके अपनाए गए । बाद में हंटर कमेटी के सामने जनरल डायर ने अपने को सही ठहराने के लिए कई कुतर्क दिए । यद्यपि हंटर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कई बार उसके तर्कों से असहमति जताते उसकी भर्त्सना की है परंतु लेफ्टिनेंट गवर्नर माईकल ओडवायर ने इस कार्य को सही साबित करने का प्रयास किया ।

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सरदार उधमसिंह द्वारा बदला

13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में बालक उधम सिंह भी वहीं था उसने अपनी आंखों से इस विभत्स हत्याकांड को देखा । अपने कानों से हजारों लोगों की चीख पुकार सुनी जिसे वे जीवन भर भुला नहीं सका । अपमान की आग उसके हृदय में जलती रही उसने 16 वर्ष की आयु में ही बदला लेने की सौगंध खाई और अनेक देशों की यात्रा ,कड़ा संघर्ष करते करते ठीक 20 वर्ष 11 महीने बाद 13 मार्च 1940 को इंग्लैंड में जाकर लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ.डायर को एक समारोह में गोलियों से भून दिया और अपने ह्रदय के साथ साथ लाखों भारतीयों के दिल की को आग को शांत किया चाहे इसके लिए उसे फांसी पर झूल कर अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा हो । 31 जुलाई 1940 को लंदन की जेल में उनको फांसी पर चढ़ाया गया बाद में 19 जुलाई 1974 को उनके भस्मावशेष भारत लाकर 5 दिन बाद हरिद्वार में विसर्जित किये गए । 1995 में इनके सम्मान में नैनीताल के पास उधमसिंह नाम से एक जिला बनाया गया ।
इस हत्याकांड के कारण बाद के वर्षों में भी ब्रिटिश सरकार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी । अनेक सांसदों ने समय समय पर सरकार के सामने उठाया है हाल के वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने इस घटना पर खेद भी जताया है लेकिन आज तक माफी नही मांगी है जो हर भारतीय के मन मे आज भी कसक है

जलियांवाला बाग स्मारक

आज अमृतसर में ठीक उसी जगह बना हुआ है जहाँ प्रतिदिन हजारों लोग जाकर शहीदों की उस पवित्र मिट्टी को अपने माथे पर लगाते है ।

संकलन एवं समीक्षा
पुस्तक – जलियांवाला बाग नरसंहार-एक ऐतिहासिक विश्लेषण

 

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