e-Magazine

मुंबई : अनाथों की माता पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन, अभाविप ने दी श्रद्धांजलि

छात्रशक्ति डेस्क

मुबंई। अनाथों की माता कही जाने वाली पद्मश्री सिंधुताई का मंगलवार को निधन हो गया। सिंधुताई पुणे के गैलेक्सी अस्पताल में ईलाजरत थीं जहां पर दिल का दौरा पड़ने पर निधन हो गया। 73 वर्षीय सिंधुताई के निधन पर देशभर में शोक व्याप्त है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने वरिष्ठ साजाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल के निधन पर गहका शोक व्यक्त किया है। अभाविप की राष्ट्रीय मंत्री प्रेरणा पवार ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सिंधुताई की जीवन यात्रा दुनिया भर की महिलाओं को समाज की भलाई के लिए लिए प्रेरित होती रहेंगी। सिंधुताई के असामयिक निधन पर कोंकण क्षेत्र के मंत्री अमित धोमसे ने भी दुख व्यक्त किया।

कौन हैं सिंधुताई सपकाल

सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1947 को वर्धा जिले के नवरगांव में हुआ था। उन्होंने कई कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए हजारों अनाथों की देखभाल की। सिंधुताई की कठिन यात्रा, जन्म से ही शुरू हो गई थी। उनकी शादी नौ साल की उम्र में कर दी गई थी। उनके जीवन के संघर्षों ने उन्हें सामाजिक कार्यों की ओर मोड़ दिया। सिंधुताई ने अनाथों की देखभाल और उनके जीवन को दिशा देने के लिए ममता बाल सदन संस्था की स्थापना की थी। संस्थान की शुरुआत 1994 में पुणे के पास पुरंदर तालुका के कुंभरवलन गांव में हुई थी। यहां युवा अनाथों को शिक्षा दी जाती है। उनके भोजन, कपड़े और अन्य सुविधाएं संस्थान द्वारा प्रदान की जाती हैं। उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा पूरी करने के बाद आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के लिए मार्गदर्शन भी दिया जाता है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बाद संगठन इन युवतियों के लिए सही साथी भी ढूंढता है और उनकी शादी का आयोजन करता है। इस संस्थान में करीब 1050 बच्चे रह रहे हैं।

READ  गोरखपुर : अभाविप आयाम विकासार्थ विद्यार्थी द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

2010 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार की ओर से अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार,  2017 में भारत के राष्ट्रपति के हाथों डॉ.  बाबासाहेब अम्बेडकर समाज भूषण पुरस्कार, नारी शक्ति पुरस्कार और 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

सिंधुताई पर बनी है फिल्म
सिंधुताई को 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 750 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। पुरस्कारों से मिली राशि को उन्होंने हमेशा अनाथालयों में खर्च की। यही नहीं 2010 में उनकी बायोपिक बनी थी। मराठी भाषा में बनी बायोपिक का नाम ‘मी सिंधुताई सपकाल’ था। ये बायोपिक 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल के वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी चुनी गई थी।

रिपोर्ट – प्रा. उमेश शर्मा, कोंकण

×
shares