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पुण्यतिथि विशेष : अरूण जेटली की कहानी उनके साथी हेमंत विश्नोई की जुबानी

श्री अरूण जेटली का 66 वर्ष की आयु में निधन न केवल उनके परिवार की क्षति है बल्कि देश,समाज और भारतीय जनता पार्टी के साथ – साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की भी भारी क्षति है । उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी करके दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज में दाखिला लिया और छात्र जगत में लोकप्रिय होते गये । इसी दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के संपर्क में आये । संघ और जनसंघ की वैचारिक पृष्ठभूमि न होने पर भी विद्यार्थी परिषद् ने उनके गुणों के आधार पर उन्हें कॉलेज छात्रसंघ से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ में 1972 में उपाध्यक्ष और 1973 में अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़वाया ।  मैं ( हेंमत कुमार विश्वनोई) भी उनकी टीम में महासचिव पद पर उम्मीदवार बना था । यह टीम नाम की दृष्टि से भी विलक्षण थी । इनमें ए से अरूण जेटली, बी से बिन्दल विजय, वी से विश्नोई हेमंत के साथ पी से (सुश्री) पुर्णिमा सेठी थे। भारी मतो से चुनाव इस टीम ने जीता और एबीवीपी का गौरव बढ़ाया ।

श्री जेटली का नेतृत्व यहां नहीं रूके । देश की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के खिलाफ पहले गुजरात और बाद में बिहार के आंदोलन को दिल्ली के छात्रों ने राष्ट्रव्यापी बनाया । दिल्ली में अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन किया जिसे श्री जयप्रकाश नारायण ने संबोधित किया । विश्वविद्यालय छात्रसंघ में भी श्री जेटली के नेतृत्व में तय किया कि किसी छात्र के गलत दाखिले या फेल को पास करने के किसी मामले पर हम दखल नहीं डालेंगे । चुनाव के बाद कार्यकाल बीतने में अधिक समय नहीं लगा लेकिन वर्तमान सरकार के खिलाफ देश भर में छात्र आंदोलन खड़े हो गए । इस कारण तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने पर देश में आपातकाल की घोषणा की गई । सभी प्रमुख विपक्षी राजनेताओं के साथ छात्र नेताओं को 25 जून की रात गिरफ्तार करने का प्रयास किया । अरूण जी के के घर भी पुलिस गई लेकिन रात को उनके वकील पिता ने पुलिस को घुसने नहीं दिया । समचार पत्रों पर रोक के कारण प्रायः व्यक्तियों के आपातकाल का एहसास नहीं था अगले दिन श्री जेटली ने विश्वविद्यालय में जाकर छात्रों को एकत्र किया और विरोध प्रदर्शन किया । उन्हें वहां से गिरफ्तार कर पहले तिहाड़ जेल और वहां से अन्य नेताओं के साथ अंबाला जेल भेज दिया । उनकी यह जेलबंदी 25 जनवरी 1977 तक चली ।

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मैं, बाद में भूमिगत कार्यों के कारण 15 अक्टूबर 1975 को पुलिस के हत्थे चढ़ा । मेरे और जेटली के खिलाफ आंदोलन के कारण दो दर्जन अन्य मुकदमें भी दर्ज थे । इस कारण उन्हें अंबाला जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में हमारे साथ लाया गया । इस 19 मास की जेल यात्रा में श्री जेटली ने कभी भी मुक्ति की चिंता नहीं की । आनंद से साथ खेलकूद, पढ़ाई और बाहर से आने वाले बढ़िया खाने के साथ समय व्यतीत किया । मेरा वजन जेल जाने के समय 55 किलो था जो रिहाई तक 70 किलो हो गया था । इसी तरह स्थिति द्वय सभी नौजवानों और छात्र नेताओं की थी ।

जेल में जाने से पहले उनका लॉ का पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाया था लेकिन अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित श्री जेटली लॉ और राजनीतिक विषयों का गंभीरता से अध्ययन करते रहे। भारत के संविधान सभा की डिबेट की प्रस्तावों को पढ़ते रहते थे । इतना ही नहीं परीक्षा देने के लए पैरोल की याचिकाएं भी दिल्ली हाइकोर्ट में दायर करते रहे । जेल से बाहर आने के बाद, अनेक राजनेता श्री जेटली और मुझे राजनीति में सक्रिय कर लोकसभा का चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन जेल में ही गहराई से चिंतन कर हमने तय किया था पहले अपने कामकाज में स्वयं को स्थापित करेंगे और फिर राजनीति में जायेंगे । इसी कारण श्री जेटली को तत्कालीन जनता पार्टी अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नामांकित किया था लेकिन श्री जेटली ने विद्यार्थी परिषद् नेतृत्व से राय करके उस पद से इस्तीफा दे दिया था । ऐसा था उनका संगठन के प्रति समर्पण ।

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मैं पत्रकारिता में आ गया और जेटली जी अधिवक्ता बन गए । मेरे पास भी हाइकोर्ट और उच्चतम न्यायालय की रिपोर्टिंग का काम होने से उनसे लगातार मिलना रहा। बाद में वह राजनीति के शिखर की ओर बढ़ते गए लेकिन हमारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा का क्रम बना रहा। एक बार मैं उनके कैलाश कॉलोनी वाले घर गया तो उन्होंने हमारी स्वर्गवासी साथी पूर्णिमा सेठी के परिवार की चिंता करने का अनुरोध किया । मैंने पता किया तो कोई राजनीतिक नेता पैसे की उगाही के लिए उन्हें परेशान कर रहा था । इससे पूर्णिमा सेठी जी की बहने आंतकित थी । पत्रकार होने के कारण, उस नेता की गतिविधियों पर रोक लगाना मेरे लिए कठिन नहीं था और मैंने वैसा ही किया । इससे पता चलता है कि श्री जेटली न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं की बल्कि उनके न रहने पर उनके परिवारों की भी चिंता करते थे।

दिल्ली में चुनाव के दौरान उनसे एक बार भेंट हुई । मुझे आश्चर्य हुआ कि विधानसभा की 70 सीटों के संभावित उम्मीदवारी में रहने वाले 4 -5 नेताओं के नाम और उनकी पृष्ठभूमि की उन्हें पूरी जानकारी थी।

जीवन परिचय

जन्म  : 28 सितंबर 1952

प्रारंभिक शिक्षा  सेंट जेवियर स्कूल (दिल्ली)

1973 –  श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स ( दिल्ली विश्वविद्यालय) से पूरी कर दिल्ली विश्वविद्यालय के ही लॉ विभाग में लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया

1973 – दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित

1973 – 74 जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये जा रहे आंदोलन में सक्रिय

1975 -77 – आपातकाल के दौरान 19 महीने की जेल यात्रा

1977 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय मंत्री बने

1978 दिल्ली से प्रकाशित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के मुखपत्र “राष्ट्रीय छात्रशक्ति” मासिक पत्रिका के प्रथम संपादक बने और अनेक वर्षों तक संपादन का काम किया

1980 वकालत की दुनिया में कदम रखा

1989 अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त

1991 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बने

1999 भाजपा के प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किये गए

1999 (13 अक्टूबर) अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बाद में राज जेठमलानी के इस्तीफे के बाद उन्हें कानून, जहाजरानी और कंपनी मामलों के अतिरिक्त प्रभार दिया गया

2000(नवंबर) – विधि, न्याय और कंपनी मामले एवं जहाजरानी मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री बने

2002 भाजपा के राष्ट्रीय सचिव बने

2003 ( जनवरी) कानून, न्याय और उद्योग मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया

2009 ( जून) राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया

2014 – 2019 (मई) नरेन्द्र मोदी सरकार में वित्त मंत्री

2019 में पुनर्निवार्चित नरेन्द्र मोदी सरकार में जिम्मेवारी लेने से इंकार ( स्वास्थ्य कारणों से)

24 अगस्त 2019 दिल्ली के एम्स में निधन

नोट – यह लेख को ‘राष्ट्रीय छात्रशक्ति’  सितंबर 2019 में प्रकाशित हो चुका है। इस लेख कोअरूण जेटली जी  से साथी रहे वरिष्ठ पत्रकार  श्री हेमंत विश्नोई (अब दिवंगत) जी ने लिखा था। 

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