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प्रस्ताव क्रमांक 5 : परीक्षा संचालन में निजी तंत्र के कारण उत्पन्न समस्याओं का हो हल

आधुनिक शिक्षा में प्रवेश, परीक्षा और परिणाम शिक्षा के महत्वपूर्ण घटक हैं । इनकी गुणवत्ता शिक्षा की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इनका पारदर्शी व निष्पक्ष रूप से क्रियान्यवयन नितांत आवश्यक है । परंतु शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संसाधनों, कर्मचारियों व उनमें तकनीकी कुशलता का अभाव और छात्रों की बढ़ती संख्या के कारण कुछ भागों में आउटसोर्सिंग को लाया गया है । जहां एक ओर आउटसोर्सिंग द्वारा शिक्षा क्षेत्र में तकनीकी के उपयोग से प्रवेश, परीक्षा और परिणाम समय पर आना शुरू हुआ तथा अनेक शिक्षण संस्थानों में आउटसोर्सिंग का प्रयोग वैकल्पिक तौर पर सफल भी हुआ है । ( राजीव गांधी मेडिकल विश्वविद्यालय में आउटसोर्सिंग का प्रयोग ऑनलाइन पेपर चेंकिग व परिणाम अपडेट करने तक ही किया जाता है ) वहीं दूसरी ओर इस प्रथा के कारण शिक्षा व्यवस्था चरमराती हुई प्रतीत हो रही है । सही नीति न होने के कारण भ्रष्टाचार में वृद्धि व विश्वविद्यालय प्रशासन की अदूरदर्शिता के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि आउटसोर्सिंग ने एक विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है । ऐसी कुछ घटनाएं निम्नलिखित है –

  1. अभाविप की यह राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् हाल ही में तेलंगाना राज्य में 23 मासूम छात्रों की मृत्यु का जिम्मेवार वहां पर प्रवेश, परीक्षा और परिणाम के लिए की गई अंधाधुंध आउटसोर्सिंग को मानती है ।
  2. हिमाचल प्रदेश में स्नातक की परीक्षा में गणित विषय का परिणाम 70 फीसदी से घटकर 34 फीसदी हो गया जिसमें 8000 हजार छात्रों को अनुत्तीर्ण व 915 छात्रों को शुन्य अंक प्राप्त हुए ।
  3. मुंबई विश्वविद्यालय क 150 साल के इतिहास में पहली बार आउटसोर्सिंग के कारण परिणाम आने में देरी हुई और इस साथ ही 9 हजार छात्रों की उत्तर पुस्तिका गायब थी जिस कारण उन छात्रों को औसतन अंक देकर उत्तीर्ण करना पड़ा ।
  4. मंगलौर विश्वविद्यालय में सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति से लेकर परीक्षा परिणाम तक हर कार्य ठेके पर दिया गया इस कारण करोड़ो रूपये का घोटाला हुआ ।
  5. वहीं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर मे आउटसोर्स को ऑनलाइन फॉर्म्स, रिजल्ट प्रिपेरेशन पर दिए जाने वाले भुगतान वर्ष 2016 – 17 में 4.5 करोड़ जबकि 2018 -19 में बढ़कर 5.8 करोड़ हो गया है इसके विपरीत छात्रों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है ।
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अभाविप की इस कार्यकारी परिषद् का यह सुविचारित मत व समय की मांग है कि आउटसोर्सिंग पर बहस हो और यह वैकल्पिक व्यवस्था स्थायी रूप न धारण करे इसके लिए मानक तय किये जायें । जो कि आउटसोर्सिंग संस्था की प्रामाणिकता व जवाबदेही को सुनिश्चित करे । औक साथ ही यह भी  सुनिश्चित हो कि इसका प्रयोग परीक्षा के आंतरिक मूल्यांकन में न हो और उसकी गोपनीयता बनी रहे ।

अभाविप की यह राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् केन्द्र व राज्य सरकार से मांग करती है  कि सभी विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों को पर्याप्त बजट आवंटन करे और शिक्षा विषय पर ठोस नीतियां बनाये ताकि विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा व परिणाम के संदर्भ में ढ़ांचागत सुविधाओं सहित तकनीकी उपयोग के लिए आत्मनिर्भर बनें ।

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