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छात्रशक्ति सितम्बर 2019

श्री अरुण जेटली नहीं रहे। अभाविप का एक कार्यकर्ता, जिसने अभाविप के विभिन्न दायित्वों पर रह कर संगठन को आगे बढ़ाने में योगदान किया हो, स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे कठिन दौर में संगठन का नेतृत्व किया हो, मूल्यों और सिद्धांतों के साथ समझौता न करने के कारण कीमत चुकाने को हमेशा तैयार रहा हो, संगठन के निर्देश पर हाथ में आती हुई सत्ता को छोड़ने का सत्साहस दिखा सकता हो, कार्यकर्ताओं के लिये ऐसे प्रेरणास्रोत का जाना पीड़ादायी है।

अरुण जी की वाक्पटुता, तीखे तर्क, सौम्य भाषा और आकर्षक व्यक्तित्व सहज ही सबको प्रभावित करते थे। इस सब से इतर उनमें एक प्रखर लेखक और संपादक भी छिपा था। इसका साक्षात्कार छात्रशक्ति के उन पुराने अंकों को पलटते हुए किया जा सकता है जिनका संपादन अरुण जी ने किया। भाषा का प्रवाह और तीखे तेवर इन अंकों की विशेषता रही।

अरुण जी छात्रशक्ति के संस्थापक संपादक रहे और अनेक वर्षों तक यह दायित्व निभाते रहे। उनका जाना जहां देश के राजनैतिक क्षितिज पर एक शून्य का निर्माण करने वाला है, वहीं छात्रशक्ति के लिये यह अपूरणीय क्षति है।

सितम्बर माह भारतीयता के पुनर्स्मरण का अवसर लेकर आता है। 11 सितम्बर को स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो की ऐतिहासिक धर्मसंसद में भारतीय जीवन और दर्शन को प्रतिपादित कर सम्पूर्म जगत को सम्मोहित कर लिया था। 14 सितम्बर को हिन्दी को देश की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। अतएव यह भारतीय भाषाओं को उपयुक्त स्थान देकर विदेशी बोझ को उतार फेंकने के अवसर के रूप में इसे देखा जाना चाहिये। यद्यपि इस दिशा में अदिक प्रगति नहीं हो सकी है किन्तु एक राष्ट्रवादी सरकार के कार्यकाल में हम इसे भी होता देखेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।

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25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय और 2 अक्तूबर को महात्मा गाँधी की जयंती हमें स्वदेशी चिंतन का स्मरण कराती है। महात्मा गाँधी के जीव के 150 वर्ष भी पूरे होने जा रहे हैं। दीनदयाल जी के शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैसी श्रंखला प्रकाशित की थी वैसी ही लेख-माला छात्रशक्ति ने महात्मा गाँधी के जीवन के अनेक अछूते बौद्धिक और दार्शनिक पहलुओं को एक श्रंखला के रूप में अपने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत की। विश्वास है कि यह उपयोगी सिद्ध हुई होगी।

कश्मीर पर देश ने एक बड़ा फैसला लिया है। इसकी सुखद परिणति राष्ट्रीय एकात्मता के रुप में सामने आये इसकी प्रतीक्षा है। देश भर के विश्वविद्यालयों के परिसरों में यह समय हलचल भरा है। सभी जगह छात्र-संघ चुनावों की गहमा-गहमी है। सभी ओर से कुछ खट्टे-मीठे समाचार प्राप्त होंगे। जिनकी सूचना अगले अंक में आप तक पहुंचेगी।

शुभकामना सहित,

संपादक

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