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संपादकीय : जून 2019

अभी चुनाव की मतगणना चल ही रही थी कि एक वयोवृद्ध प्राध्यपक का फोन आया। वे मतगणना के रुझान से गदगद थे और अपनी प्रसन्नता को संभाल नहीं पा रहे थे। भावावेश में उन्होंने कहा – भारत ने एक हजार वर्ष बाद अपने लिये निर्णय किया है। उनका मानना था कि 2014 का निर्णय भ्रष्ट और निकम्मी सरकार के विरुद्ध एक जनादेश था। इस बार ऐसा नहीं है। इस बार भारत ने अपनी पहचान को निरंतर दी जा रही चुनौती का प्रत्युत्तर दिया है। यह जनादेश किसी के विरुद्ध नहीं बल्कि भारत और भारतीयता के पक्ष में दिया गया सकारात्मक निर्णय है जिसे स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में पहचाना जायेगा।

वे बड़े विद्वान हैं, मौलिक चिंतन और सटीक विष्लेषण उनकी विशेषता है। इसलिये वे इतनी गहराई तक जा सके। लेकिन जो सामान्य नागरिक इतनी समृद्ध शब्दावली और गहन अंतर्दृष्टि से सम्पन्न नहीं हैं, वे भी अपने मन में यही सोच पाले बैठे थे। यही कारण है कि जाति, पंथ और क्षेत्र जैसे मुद्दे किनारे हो गये और राष्ट्रीय पहचान और राष्ट्रीय गौरव का प्रश्न केन्द्रीय भूमिका में आ गया।

राष्ट्रीयता का यह प्रवाह इतना तेज था कि तथाकथित सेकुलर, वामपंथी, सोच तो कहीं टिक ही नहीं सकी, टुकड़े-टुकड़े गैंग के एक मात्र प्रत्याशी कन्हैया कुमार, जिनके समर्थन में देश के सारे लिबरल समूहों ने बेगूसराय में डेरा डाल दिया था, को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।

राजनीति से परे, अभाविप के लिये यह उत्सव का प्रसंग है। जिस राष्ट्रीय विचार को देश की केन्द्रीय भूमिका में लाने के लिये कार्यकर्ताओं की पीढ़ियां लगीं, उसकी दिशा में यह एक मील का पत्थर है। अभाविप की सफलता केवल यह नहीं है कि एक समविचारी दल की राजनैतिक विजय हुई है। इससे आगे, देश ने भारत और भारतीयता के विचार को अंतःकरण से स्वीकार किया है। देश के छात्र और युवाओं ने इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। निस्संदेह, मोदी भारत नहीं हैं, लेकिन 2019 की नरेन्द्र मोदी की जीत भारत की जीत है।

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भारत की जीत का अर्थ उस आस्था, उस विश्वास की जीत है जिस पर भारत का भरोसा है। उन जीवन मूल्यों की जीत है जो भारत की पहचान को गढ़ते हैं। यह उस राष्टीय गौरव के भाव की जीत है जो बालाकोट की कार्रवाई के बाद प्रत्येक भारतीय के मन में उत्पन्न हुआ है। यह भारत को विश्वमालिका में उसका यथायोग्य स्थान दिलाने की दिशा में बढ़े हुए कदम की जीत है। वस्तुतः यह उस संकल्प की जीत है जिसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपनी स्थापना के समय लिया था और 1998 में मुंबई के सोमैया मैदान में हुए अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में दोहराया था।

परिषद का विश्वास है कि यह भारत की विकास यात्रा के एक चरण की सम्पूर्ति है तथा अपने सुविचारित वैचारिक अधिष्ठान को आगे बढ़ाने के लिये नये संकल्प लेने का अवसर है। सशक्त, समृद्ध और स्वाभिमानी भारत के अगले चरण की यात्रा का यह प्रस्थान बिन्दु है जिस पर चल कर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में शिक्षा क्षेत्र की पुनर्रचना हेतु अभाविप अपनी निर्णायक भूमिका का निर्वाह करेगी।

हार्दिक शुभकामना सहित,

आपका

संपादक

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